________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
समीक्षा
"अथ मिथ्या दृष्टि जीवनिको मोक्षमार्गका उपदेश देय तिनका उपकार करना यही उत्तम उपकार है। तीर्थकर गणधरादिक भी ऐसा ही उपाय कर हैं तात इसशास्त्रवि (मोक्षमार्गप्रकाशकविधे ) भी उन्हीका उपदेशके अनुसार उपदेश दीत्रिय है। तहां उपदेशका स्वरूा जाननके अर्थ किट्र व्याख्यान कीजिये है जातें उपदेशको यथावत न पहिचान तो अन्यथा मानि विपरीत प्रवत ताने उपदेशका स्वरूप काय है।
जिनमतविपे उपदेश चार अनुयोगका दिया है । सो प्रथमानुयोग,करमानुयोग, चरणानुयोग, द्रव्यानुयोग ए चार अनुयोग है। तहां तीर्थकर चक्रवर्ति आदि महान् पुरुषनिक चरित्र जमविप निरूपण किये होय सो प्रथमानुयोग है। बहुरि गुणस्थान मार्गणादिरूप जीयका कर्मनिका वा त्रिलोदिका जाविषे निरूपण होय सो करणानुयोग है । बहुरि गृहस्थ मुनिके धमआचरण करनेका जाविषे निरूपमा होय सो चरणानुयोग है ! बहुरि षद्रव्य सप्ततमाविका का स्वपरभेदविज्ञानदिकका जाविषे निरूवा होय सो द्रव्यानुयोग है।
इहां इतना कहने का तात्पर्य यह है वि शास्त्रोंके पठन पाठनके किये बिना स्वयमेव तो योग्यता में हिताहितका स्वर्ग नर्कादिकके मुख दुखोंका पटद्रव्य नवपदार्थाका मुनि श्रावक चारित्रका
For Private And Personal Use Only