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जैन तत्त्व मीमांसा की इस कथनसे पं० फूलचन्दजी सिद्धान्तशास्त्री छात्रोंक पढने में पास होने में पास न होने में एक क्लास में पढनेवाले छात्र समानरूपसे न पढने में ज्ञानावरणाकर्मका क्षयोपशम नहीं मानते । किन्तु वे उनकी योग्यतापर निर्भर करते हैं ! उनका यह भी कहना है कि "मोहनीयकर्मके क्षयसे तथा ज्ञानावरण दशनावरण और अंतराय कर्मक क्षयसे केवलज्ञान होता है यह कथन उपचरित है वास्तविक यह बात नहीं है। अर्थात् तत्त्वार्थसूत्रकारने दसवी अध्या. यमें जो यह बतलाया है कि " मोहक्षयाज्ञानदर्शनावरणान्तरायक्ष्याच्च केवलम् " यह उपचरित कथन है। ____ "स्पष्ट है कि यहां पर जीवकी केवलज्ञान पर्याय प्रगट होनेका जो मुख्य हेतु उपादान कारण है उसे तो गौण कर दिया गया है और जो ज्ञानकी मतिज्ञान आदि पर्यायों का उपचरित हेतु था उसके प्रभावको हेतु बना कर उम की मुख्यतासे ,ह कथन किया गया है यहां दिखलाना तो यह है कि जब केवलज्ञान अपने उपादानके लक्ष्यसे प्रगट होता है तव ज्ञानावरणादि कमरूप उपचरित हेतुका सर्वथा अभाव रहता है। परन्तु इसे (स्वभावको) हेतु बना कर यों कहा गया है कि ज्ञानावरणादि काँका क्षय होनेसे केवलज्ञान प्रगट होता है यह व्याख्यानी शली है जिसके शास्त्रों में पद पद पर दर्शन होते हैं । परन्तु यथार्थ बातको समझे विना इसे ही कोई यथार्थ मानने लगे तो उस क्या कहा जाय ?"
जैनतत्त्वमीमांसा पृष्ठ २० अर्थात् आपकी मान्यतामें “ मोहक्षयाज्ञानदर्शनावरणान्तरायच्याच केवलम् " यह यथार्थ वात नहीं है यह तो उपचरित है जैसा कानजी स्वामी मानते हैं उनका वैसा ही आपका समर्थन है। जैसे योग्यता का वे ढींढोरा पीटते हैं वैसा ही आप योग्यता का ढींढोरा पीटते हैं । कानजी कहते हैं कि-"पेट्रोल
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