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समीक्षा
करना ऐसा उपदेश भगवानने दिया है। परन्तु यह मान्यता भूल भरी है कोई जीव किसी जीव की हिंसा नहीं कर सकता है। -आत्मधर्म पृष्ठ १३ अंक १ वर्ष १
"जो शरीरकी क्रियामें धर्म मानता है सो तो बिलकुल वहिदृष्टि मिथ्यादृष्टि है। किन्तु यहाँ तो जो पुण्य में धर्म मानता है सो भी मिथ्यादृष्टी है।
आ०ध०पृ० १० अं० १ वर्ष ४ "शरीर अच्छा होगा तो धर्म होगा और पांचों इन्द्रियां ठीक होगी तो धर्म में सहायक होगी इस प्रकार जो परके आधीनसे आत्मधर्म मानता है वह मिथ्यादृष्टी है
आध०० १२० अ० ८ वर्ष १ "कोई जीव यह मानता है कि दान पूजा तथा यात्रा आदिसे धर्म होता है और शरीरकी क्रियासे धर्म होता हैं यह मंतव्य मिथ्या है। आत्मधर्म अंक ५ वर्ष ३ ____ इन पंक्तियो से कानजी शरीराश्रित क्रियाओंसे धर्म होना नहीं मानते जब शरीराश्रित क्रियाओंसे धर्म नहीं होता तो शरोराश्रित क्रियाओंसे अधर्म भी नहीं होता यह स्वतः सिद्ध है। क्योंकि औदारिकादि शरीर रहित आत्मा कुछ भी क्रिया नहीं कर सकती फिर शरीराश्रित क्रियाओं के विना शरीर रहित आत्मा कौनसी क्रियाओं को करता है जो उसे धार्मिक क्रिया मानी जाय ? इसलिये शरीराश्रित क्रियाओंसे यदि धर्म होता है तो शरीराश्रित क्रियायोंसे अधर्मभी हाता है । यदि शरीराश्रित
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