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समीक्षा
११६ यह वस्तुस्थिति है । प्रमाणनयनिक्षेपों के विषय में यहांतक आगमानुकूल मामा "जैन तत्वमीमामाको समीक्षा की गई इसके आगे आधारावय और संयोग सम्बन्ध के विषय में थोडा प्रकाश डाला जाता है।
आपका कहना है कि "प्रत्येक स्वतंत्र है। इसमें उसके गुण और पर्याय भी उसी प्रकार स्वतंत्र है यः कथन आही जाता है । ( यह कान नाके शब्द है । इसलिये विवक्षित किसी एक द्रव्यका या उसके गुण और पयार्या का अन्य द्रव्य या उसके गुणा और पर्यायांक साथ किसी प्रकारका मा सम्बन्ध नहीं है, यह परमार्थ सत्य है इसलिये एक द्रव्यका दूसरे द्रव्य के साथ जो संयागसम्बन्ध वा आधाराधेयभाव आदि कल्पित किया जाता है उसे अपरमाणभूत हो जानना चाहिय"
इस विषयका स्पष्टीकरण करते हुये आपने कटोरी घी का दृष्टान्त दिया है वह निम्नप्रकार है।
"हम पूछते हैं कि उस घीका परमार्थभूत आधार क्या है ? कटोरी या घी? आप कहोगे कि धोके समान कटोरी भी है तो हम पूछत है कि कटोरा का आंधा करने पर वह गिर क्यों जाता है ? जो जिसका वास्तविक आधार होता है उसका वह कभी त्याग नहीं करता। इन सिद्धान्त के अनुसार यदि कटारी भी घीका वास्तविक प्राधार है ता उसे कटारीको कभी भी नहीं छोडना चाहिय। ... परन्तु कटारा के आधा .रने पर वह कटोरी को छोड ही देता है। इससे मालुम पढता है कि पटोर घी का वास्तविक "श्राधार नहीं है। उसका वास्तविक आधार तो घो ही है । क्यो कि वह उसे कभी भी नही छोडता वह चाहे कटोरी में रहे चाह वह भूमि पर रहे. या उडकर हवाम विलीन हो जाय वह रहेगा
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