________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
समीक्षा
ही का कर्ता अज्ञान अवस्था में हैं । पर द्रव्बके भावका कर्ता तो यह भी कदाचित नहीं है। : "शुद्धभाव चेतन अशुद्ध भाव चेतन, दुहूंको करतार जीव और नहीं मानिये । कर्मपिण्डको विलास वर्ण गंध रस फास, करतार दोहूं को पुद्गल परमानिये। तात वरणादि गुण ज्ञानावरणादिकम, नानापरकार पुद्गलरूप जानिये । ममल विमल परिणाम जे जे चेतन के, ते ते सब अलख पुरुष यों वखानिये ॥ "ज्ञानभाव ज्ञानी करे अज्ञानी अज्ञान । द्रव्य कर्म पुद्गल करे यह निश्चे परमान" इस विषय में प्राचार्य कहते हैं कि
"जं भावं सुहमसुहं करेदि आदा म तस्स खलु कचा तं तस्स होदि कम्मं सो तस्स हु वेदगो अप्पा ॥ १०६
टीका-सातासातोदयावस्थाभ्यां तीब्रमंदस्वादाभ्यां सुखदुःखरूपाभ्यां वा चिदानंदकस्वभावैकस्याप्यात्मनो द्विधा भेदं कुर्वाणः सन् यं भावं शुभाशुभं वा करोत्यात्मा स्वतंत्ररूपेण व्यापकत्वात्स तस्य भावस्य खलु स्फुटं कर्ता भवति तदेव तस्य शुभाशुभरूपस्य भावकर्मणो वेदको भोक्ता भवति स्वतंत्ररूपेण भोक्तृत्वात् न च द्रव्यकर्मणः।
For Private And Personal Use Only