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समामा
करि तिस अात्माके भावने योग्य होय है । तातें अनुभवनेयोग्यहोय है । ऐसे अज्ञानी है सो भी परभावका कर्ता नाहीं है।
"कर्ता परिणामी द्रव्य कर्मरूप परिणाम । क्रियापर्यायकी फेरनी वस्तु एक त्रियनाम ।। कर्ता कर्म क्रिया करे क्रिया कर्म कर्तार । नामभेद वहुविधि भयो वस्तु एक निरधार ॥ एक कर्मकर्तव्यता करे न कर्ता दोय। दुधा द्रव्य सत्ता सु दो एकभाव किम होय।। रागादि अध्यवसानादिभावोंका कर्ता आत्मा है। तथा इन अध्यवसानादिभावोंका उपजानेला ज्ञानावरसादि भाठकर्म है सो पुद्गलमय है ऐसा सर्वज्ञ देव कहै है। "अट्ठविहं पि य कम्मं सव्वं पुग्गलमयं जिणा विति । जस्स फलं तं बुच्चदि दक्खंति विपच्चमाणस्स ॥
टीका-अध्यवसनादिभावनिर्वतकमष्टविधमपि च कर्म समस्तमेव पुद्गलमयमिति । किल सकलज्ञज्ञप्तिः तस्य तु यद्विपाककाष्ठामधिरूढस्य फलत्वेनाभिलप्यते । तदनाकुलत्वलक्षणसौख्याख्यात्मस्वभावविलक्षणत्वात्किल दुःखं तंदतःपाति न एव किलाकुलत्वलक्षणा अध्यवसानादिभावाः ततो न त चिदन्वयविभ्रमप्यात्मस्वभावाः किन्तु पुद्गल स्वभावाः यद्यध्यवसानादयः पुद्गलस्वभावास्तदा कथं जीगरोन मूचिता इति चत,
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