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बार भीख अवस्था ही नहीं बन सकती है । इमलिय प्राचार्य
जो एकान्त नय पक्ष गहि छक कहावे दन्न ।
नों एकान्तवादी पुरुष मृपावत परतक्ष सजा का संमार ओर मुक्तवत्थाको बास्तविक स्वीकार तभा कर्म के मात्र आत्मा के गाम्बन्ध को वास्तविक नहीं ...नले त्या विना का सम्बन्धक ही नाविका संसार अबयादि है तो कर्म रहित सिद्धो को अवस्थान संसार समस्या अतर क्या : *: कमों के सम्बन्ध संजीवका संसार आस्था है और मौके अभाव में जयिका मुन्न स्था है ऐसा
का प्राचायों ने स्वीकार किया है । मुक्त होना, मोन्ह होना इस पद का सिद्ध होता है कि पहिले जोव बन्धा हुआ था अव मछुटकारा पाकर मुक्त होगया अत: मंसार पूर्वक ही मोक्ष है याद ममार नहीं है तो मोक्ष भी नहीं है । और वह वास्तविक इस बात का प्रसिद्ध करने के लिये आप जा चइ कहते हैं कि"जीवका संझार उमकी पर्याय में ही है । और मुक्त भी उस पायम दी है । यह वास्तविक कर्म और लामाका संश्लेष नाम शब्द ही जीव और कर्म के प्रथम - हाने । ख्यापन रता है । इमोलिये मथार्थ शार्थका रया न करने हुये शास्त्रकारों ने यह वचन कहा है कि-जिम्म नभय श्रारम, शुभ भावरूपसे परिare है उस समय वह य शुभ है । इस समय अशुभ मत में परिणत होता है उस समय वह स्वय अशुभ है। आर काम पर शुद्धभाष रूपन परिणत होता है उस समय वह स्वयं गत है। यह क न रा ही द्रव्य के आश्रयसे किया गया। दो दया आश्रम से नहीं इनलिये परमार्थ भूत है । और कर्माके कारण जोन शुभ या अशुभ होता है और कमों के अभाव होने से
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