________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
"जन तत्व मीमामाक.
दोय करतूति एक द्रव्य न कन्त है। जीव पुद्गल एक खेत अब गाहि दोऊ अपने अपने रूप वोऊन टरत है। जब परिणामनिको करता है पुद्गल, चिदानन्द चेतनस्वभाव आचरत है। --कामिक्रियाद्वार :
अत: माँके निमित्तसे आत्माक रागद्वेष परिणाम होते है और ज.वके रगडष परिणामों के निमित्तसे पुद्गल यामरूप होकर आत्मप्रदेश में एक क्षेत्रावगाही होते हैं ऐसा मानने एक इत्रम दूसरे द्रव्य का कारणरूप गुण और दूसरे द्रव्यां उसका सरूप गुण मानना पड़ता है यह वात सर्वथा अभिद्ध है । क्योंकि जीव
और पद्गल यह दोऊ द्रव्य अपनी वैभाविकीशक्ति के द्वारा बाहर निमित्तानुसार विभावरूप परिणमन करते रहते हैं यह उस शक्तिका ऐसा ही परिणमन स्वभाव है। इस परि मन स्वभावको कोई मिटा नहीं सकता। अत: इस परिणमनमें एक दरके गुणधर्म दूसरे द्रव्यमें संक्रमण होनेको आशंका उत्पन्न कर भोले जीवाको वस्तुस्वरूपसे विमुख करना है। ____ यह वात प्रत्यक्ष्य में देखने में आती है कि अग्निके संयोगसे जन गर्भ होजाता है किन्तु अग्निका कोई भी ग्रंश जलरूप नहीं होता और न जलका भी कोई अंश अग्निरूप ही होता है किन्तु जल अपनी वैभाविकी शक्तिस अग्निका निमित पाकर गर्म होजाता है और अग्निका संयोग मिट जाने पर फिर वह जल अपने स्वभावरूप शीत होजाता है ऐसे हा सर्व पदार्थोंमें घटित करलेना चाहिये।
"जसे एक जल नानारूप दरवानुयोग भयो बहुभांति पहिचानों न पस्त है। फिर काल पाय दरवानुयोग दूर
For Private And Personal Use Only