________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जैन तत्त्व मामासा परणमता जो पदार्थ मो याका विषय है । जैसे चैतन्य, अपना चैतन्यभावरूप परिणमें ताकू चैतन्य ही कहै हैं । क्रोधीको क्रोधी ही कहे हैं। ____ यहां प्रश्न-जो अध्यात्मननिमे व ह्या है जो निश्चयनय तो सत्यार्थ है -यवहार असत्यार्थ है ' त्यजने योग्य है । सो यहु उपदेश कैसे हैं ? ताका समाधान-जो उपदेश दोय प्रकार प्रवर्ते है तहां एक तो आगम तामे तो निश्चय द्रव्यार्थिक पर्यायाथिक दोऊ ही नय परमार्थरूप सत्यार्थ कहैं हैं । तथा प्रयोज.. और निमित्तके वशते अन्य द्रव्य गुण पर्यायनिक अन्य द्रव्यपर्यायनिविप श्रारोपण करना सो उपचार है याकू व्यवहार कहिये । असत्यार्थ भी कहिय गौण भी कहिये बहुरि दूसरा अध्यात्म उपदेश तामें अध्यात्मनथका आशय यह है जो प्रात्मा अपना एक अभेद नित्य शुद्ध असाधारण चैतन्य मात्र शुद्ध द्रव्याथिकनयका विषय है सो तो उपादेय है वहुरि अवशेष भेद पर्याय अनित्य अशुद्ध तथा माधारणगुण तथा अन्य द्रव्य ये सई पर्याय नयके विषय हैं ते सब हेय हैं | काहे ? जातें यह आत्मा अनादिने कम्वन्धपर्यायमें मग्न है । क्र.मरूपज्ञानते पर्यायनिकू ही जाणे है । अनादि अनन्त अपना द्रव्यत्वभावका यांक अनुभव नाही तातें पर्यायमात्रमें आपा जाने है । तात ताकू द्रव्यदृष्टिकराक्नेके अथिं पर्यायदृष्टिकू गौणकरि असत्यार्थ कहिकरि एकान्तपक्ष छुडावनेके अथि झूठा कह्या है । ऐसा तो नहीं है जो ए पर्याय सर्वथा ही झूठ है। किच वस्तु ही नाही । आकाशके फूलवत् है । जो अध्यात्मशास्त्रका वचन है ताकू सर्वथा एकान्त पकड करि पर्यायनिक सर्वथा झूठ माने तो वेदाती तथा सांख्यमतीकी ज्यों मिथ्याष्टि यहरे है । पहिले तो पर्यायबुद्धिका एकान्त मिथ्यात्व था । अव ताकू सर्वथा छोड़ि द्रव्यनयका मकान्त मिथ्या दृष्टि होगा, तव गृहीतमिथ्यात्वका सद्भाव श्रावेगा।
For Private And Personal Use Only