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समीक्षा
काल अवशेष अनन्त धर्मका एक वस्तु में है। ऐसे तो कालकरि अभेदवृत्ति है। तथा जो वस्तुका अस्तित्वके तद्गुणपणा है श्रात्मरूपं है मोही अनन्तगुणनिका भी है। ऐसे आत्मस्वरूपकी अभेद वृत्ति है। तथा जो द्रव्यनामा आधार अस्तित्वका है सो ही अन्य पर्यायनिका है ऐसे अर्थकरि अभेदवृत्ति है तथा जो कथंचित् तादात्मक स्वरूप अभेदभाव संवन्ध अस्तित्वका है सोही समस्त विशेषनिका है । ऐसे सम्बन्धकरि अभेदवृत्ति है । तथा आपमें अनुरक्त करना उपकार अस्तित्वका है सोही अन्यगुणनिका. है. ऐसे उपकार करि अभेदवृत्ति है तथा जो गुणीका देश अस्तित्वका है सो ही अन्य गुणनिका है ऐसे गुण देशकरि अमेदवृत्ति है। तथा जो एक वस्तुत्य स्वरूपकरि अस्तित्वका संसर्ग है सो ही अन्य समस्त धर्मनिका है । ऐसे संसर्ग -करि अभेदवृत्ति है । तथा जो अस्तित्व ऐसा शब्द अस्तित्व धर्म स्वरूप वस्तुका वाचक है सो ही वाकीके अशेष धर्म स्वरूप वस्तुका वाचक है। ऐसे शब्दकार अभेदवृत्ति है । ऐसे पर्यायार्थिकको गोणकरि द्रव्यार्थिक पणाके प्रधानपणाते प्राप्त होय है किन्तु
द्रव्यार्थिकको गौणकरि पर्यायार्थिक को प्रधान करि गुणनिकी कालादिक अष्ट प्रकार की अभेदवृत्ति नहीं होती क्योंकि क्षण २ प्रति और और पणाकी प्राप्ति होनेसे सर्व का काल भिन्न भिन्न है नाना गुण एक वस्तुविषे एककाल नहीं पाया जाता यदि पाया जावे तो गुणों का आधाररूप वस्तु के भी उतनेही भेद होजावेंगे इमलिये कालकरि भेदवृत्ति है । तथा तिनि गुणनिका आत्मस्वरूप भी भिन्न है। क्योंकि अभिन्न होय तो भेद कैसे होय । तातें अात्मस्वरूपकरि भेद वृत्ति है । तथा तिनिका आश्रयभी जुदा जुदाही है जो जुदा न होय तो नाना गुणका प्राश्रय वस्तु न ठहरे ऐसे आश्रयकरि भेदवृत्ति है ! तथा सम्बन्धीके भेद करि भेद देखिये हैं। जातें अनेक सम्बन्धनिकरि एक वस्तु विषे सम्बन्ध वणता
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