________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
६०
जैन तत्त्वममांसा की
किया है। श्लोक में " गुणाक्षेपः" पर आया है उसका अर्थ चारों निक्ष पीमें इस प्रकार घटित कर लेना चाहिये ।
नाम गौण पदार्थ में अर्थात अतद्गुण पदार्थ में केवल व्यवहा रार्थ किया हुआ आक्षेप, स्थापना में श्रतद्गुण पदार्थनें किया हुआ गुणों का आक्षेप, द्रव्य में भावि अथवा भूत तद्गुण में वर्तमानवत् किया हुआ गुणों का आक्षेप, भावमें वर्तमान तद्गुणमें किया हुआ वर्तमान गुणों का आक्षेप, इस प्रकार गौणमें आक्षेप अथवा गुणांका आक्षेप हीं निक्षेप है। नाम स्थापना द्रव्य ये तीन निक्षेप द्रव्यार्थिक नयका विषय है। भाव निक्षेप पर्यायार्थिक नयका विषय है । अन्तर नयोंकी अपेक्षा नाम निक्षेप तो सम[free नय का विषय है । स्थापना और द्रव्य निक्षेप नैगम नयका विषय है। भाव निक्षेप ऋजु सूत्र तथा एवं भूत नयका विषय है ! नय प्रमाणका विषय और भी श्राचार्य स्पष्ट करते हैंतत्त्वमनिर्वचनीयं शुद्धद्रव्यार्थिकस्य भवति मतम् । गुणवद् द्रव्यं पर्यायार्थिकन यस्य पक्षोऽयम् || ७४७ ||
।
----
अर्थात्-तत्त्व अनिर्वचनीय है अर्थात् वचनके अगोचर है यह शुद्ध द्रव्यार्थिक नयका पक्ष है। तथा तव द्रव्य गुण पर्याय वाला है यह पर्यायार्थिक नयका पक्ष है अर्थात तत्त्व अभेद बुद्धिका होना द्रव्यार्थिक नय है और उसमें भेद बुद्धि होना पर्यायार्थिक नय है ? यदिदमनिर्वचनीयं गुणपर्यायवत्तदेव नास्त्यन्यत् । गुणपर्यावद्यदिदं तदेव तत्त्वं तथा प्रमाणमिति || ७४८ ||
अर्थात- जो तत्त्व अनिर्वचनीय है वही गुण पर्यायवाला है अन्य नहीं है । तथा जो तत्त्व गुण पर्यायवाला है वही तत्त्व है यही प्रमाणका विषय है । भावार्थ- वस्तु सामान्य विशेषात्मक है वस्तका सामान्यांश द्रव्यार्थिकका विषय है उसका विशेषांश
For Private And Personal Use Only