________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
ن
जैन तत्त्व मीमांसाकी
चित भी हैं। कथंचित भेदाभेद रूप भी है। अतः वस्तुका सदरूप कथन करने वाला व्यवहार नय है तथा वस्तुका अभेदरूप कथन करन वाला निश्चय नय है। और वस्तुका भेदाभेदरूप कथन करने वाला प्रमाण है इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि तीनों ही नय प्रमाण वस्तुकं सामान्य विशेष का ही प्रतिपादक हैं वस्तुक सामान्य विशेष को छोडकर भिन्न पदार्थका प्रतिपादक नहीं है इसलिये वे सब नय प्रमाण सम्यक रूप हैं इनको मिथ्या समझना ही मिथ्या है।
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जो नय और प्रमाण परस्पर की सापेक्षाको छोडकर वरू स्वरूपका कथन करता है तो वह वस्तुस्वरूप भी मिथ्या है और उसका प्रतिपादन करने वाला नय और प्रमाण भी मिथ्या है यद्यपि निरपेक्ष नय भी वस्तु के स्वरूप का आंशिक रूपमें वर्णन करता है तथापि वह मिथ्या इसलिये है कि अपर नय निरपेक्ष आशिक कथनकरनेसे आशिकरूप ही वस्तु स्वरूप समझा जाने लगेगा। क्योंकि अपर नय निरपेक्षता मे यह बात नहीं हतो कि अपर नय क्या कहता है किन्तु सापेक्ष नयके कथन में अपर नय की अपेक्षा रहती है जिससे यह बात स्पष्टरूप से समझमें आजाती है कि वस्तु स्वरूप इतना ही नहीं है और भी कुछ है इसलिए माज़ नयका जितना कहना है उतना सत्य है तथा जो नय एक के गुणों को दूसरे के गुण बताया करता है वह नय ही नहीं है वह नयाभास है इसलिये वह नय अपरमार्थभूतही है, मिथ्या है। उस
का लक्षण ही दिन नहीं होता क्योंकि नयका लक्षण ही ऐसा है कि वह लक्ष्यभूत वस्तु के सामान्य और विशेष धर्मका ही विवेचन करता है । वह अन्य लक्ष्य वस्तुके गुणधर्मका विवेचन नहीं करता वस्तु सामान्य और विशेष दो धर्म रहते हैं उन दोन धर्मका प्रतिपादन करने वाली भी दोय तय हैं। वस्तुके सामान्य धर्मका कहने वाला द्रव्याथिक (निश्चय) नय है। और
For Private And Personal Use Only