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समीक्षा
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___ अतः वस्तु सामान्यविशेषात्मक है इसलिये उसका कथन भी सामान्यविशेषात्मक ही होता है । वस्तुके सामान्य अंशका कथन करनेवाला निश्चयनय है और वस्तुक विशेषांशका कथन करने वाला व्यवहार नय है । आचार्य कहते हैं कि "मम्यकदशा प्रमाण उभय नय" अर्थात सम्यकरूप वस्तु स्वरूपकी मिद्धि उभय नय से सिद्ध होती है ऐसा जिनेन्द्र भगवान ने कहा है। ___ वस्तु एक रूप भी है तथा अनेकरूप भी है इस एकता अनेकता के समझने के लिये ही उभय नय अविरोध रूपसे वस्तुमे एकता अनेकता को सिद्ध करता है । इसलिये आचार्य कहते है कि-- निहचेमें एकरूप व्यवहारमें अनेक गाही नविरोधमे जगत भरमायो है । जगतके विवाद नाशवकू' जिनआगम है ज्याम स्यादवाद नाम लक्षण सुहायो है ।। दरशनमोहजाको गयो है सहजरूप आगमप्रमाण ताको हिरदे में आयो है अनयसो अखंडित अनूतन अनंत तेज एसो पद परण तुरत तिन पायो है। ___ अर्थात-वस्तुस्वरूप समझनके लिय स्याद्वादका शरण लेना पडता है । अतः सापक्ष निश्चय और व्यवहार नय हे वही स्याद्वाद है। इसके अतिरिक्त स्याद्वाद दूसरी कोई वस्तु नहीं है कथंचित् निश्चयनय की अपेक्षा वस्तु एकरूप है । कथंचित व्यवहारनयकी अपेक्षा वस्तु अनेक रूप है यही तो स्याद्वाद है।
व्यवहारनयके द्वारा वस्तुस्वरूप समझने से वस्तु में श्रास्तिक्यवृद्धि होती है । व्यवहारनयसे यह वात जानी जाती है कि वस्तु अनन्तगुणोंका एक पुज है क्योंकि गुणोंकी विवक्षामें गुणोंक सद्भाव सिद्ध होता है और गुणोंके सद्भावमें गुणीका सद्भाव स्व
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