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समीक्षा
पर्यायाथिक का विषय है । तथा सामान्य विशेषात्मक उभयात्मक वस्तु प्रमाण का विषय है। प्रमाण एक ही समय में विरुद्ध रीतिसे दोनों धर्माको विषय करता है। ___ भेदअभेदपक्ष-यव्यंत न गुणो योपि गुणस्तन्न द्रव्यमिति चायोत् । पयोयोपि यथा स्याद् जुनयपक्षः स्वपक्षमात्रत्वात् ॥७५०॥ ___ अर्थात-जो द्रव्य है वह गुण नहीं है, जो गुण है वह द्रव्य नहीं है तथा जो द्रव्य गुण है वह पर्याय नहीं है । यह ऋजुसूत्र नय पर्यायार्थिकका पक्ष है क्योंकि भेद पक्षही पर्यायार्थिक (व्यवहार ) नय का पक्ष है तथा जो द्रव्य है वही गुण है जो गुण है वही द्रव्य है क्योंकि गुण द्रव्य दोनोंका एक ही अर्थ है यह अभेद पक्ष द्रव्यार्थिक (निश्चय ) नय का पक्ष है । तथा भेद और अभेद इन दोनों पक्षों में समर्था विक्षित प्रमाण पक्ष है । अतःपृथगादानमशिष्टं निक्षेपो नयविशेषश्च यस्मात् । तदुदाहरणं नियमादस्ति नयानां निरूपणावसरे॥
७५१ पंचाध्यायी अर्थात-नय और प्रमाणके समान निक्षपोंका स्वतंत्र निरूपण करने की आवश्यक्ता नहीं है क्योंकि निक्षपोंका उदाहरण नयों के विवेचन में नियमसे किया गया है। एकअनेकपक्ष-अस्ति द्रव्यं गुणोथवा पर्यायस्तत्त्रयं मिथोऽनेक व्यवहारविशिष्टो नयः स वाऽनेक संज्ञको न्यायात् ॥७५२।।
अर्थात-द्रव्य अथवा गुण अथवा पर्याय यह तीनोंही अनेक है व्यवहार विशिष्ट यही नय अनेक मंत्रक कहलाता है । क्योंकि
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