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नहीं इसलिये सम्बन्धरि भेद वृत्ति है। तथा गुणनिकार किया उपकार प्रतिनियत जुदा जुदा ही है तारों अनेक हैं इसलिये उपकारकरि भेद वृत्ति है । तथा गुणीका देश है सो गुण गुणी प्रति भेदरूप है । अभेदरूप कहिये तो भिन्न पदार्थ के गुणते भी अभेदका प्रसंग श्रावे इसलिये गुण देशसे भी भेद वृत्ति है । तथा शब्द के विषय प्रति नानापरणा है सर्व गुणनिका एक ही शब्द वाचक होय तो सर्वपदार्थनिका एक शब्द वाचक ठहरे तब अन्य शब्द के निरर्थकपणा आवे ऐसे शब्द करि भेद: वृत्ति है । ऐसे परमार्थते अस्तित्वादि, गुणनिका वस्तुविष अभेदका असंभव होते कालादिक करि श्रभेदोपचार कीजिए हैं । ऐसे अभेद वृत्ति अभेदोपचार भेद वृत्ति भेदोपचार इनि दोऊनिते एक शब्द अनन्तधर्मात्मक जीवादि वस्तुका यहु स्यात् शब्द है सद्योक है।
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उपरोक्त कथन eeraaकरि स्पष्ट करिये है जैसे कोई एक मनुष्यनामा वस्तु है सो गुण पर्यायनिकरि समुदायरूप समुदायरूप तो द्रव्य है। और याका देहप्रमाण संकोच विस्ताररूप क्षेत्र है। तथा गर्भ से लेकर मरणापर्यंत याकाकाल है तथा जितनी गुणपर्यायनिकी अवस्था है वह याके भाव है ऐसे द्रव्यादि चतुष्टय या गर्भित है कालादिकर अभेदवृत्तिरि कहिये तव जेते काल आयु बल पर्यंत मनुष्यपणा नामा गुश है तेते ही काल अन्य या सर्व धर्म हैं। ऐसे कालकरि प्रभेदवृत्ति है तथा जो ही मनुष्य परण के मनुष्यरूपकरणा आत्मरूप है मोही अनेक अन्यगुणनिके है। ऐसे श्रात्म रूपकरि अभेदवृत्ति है तथा जोही श्राधारद्रव्यनामा अर्थ मनुष्यका है मोड़ी अन्य या पर्यायनिका है। ऐसे अर्थकार अभेदवृत्ति है तथा जोही अभिन्नभावरूप तादात्म्यलक्षणसम्बन्ध मनुष्यपणा के है सोही अन्य सर्वगुण निके है ऐसे सम्बन्धकरि अभेदवृत्ति है । तथा जोही उपकार मनुष्यपणाकरि अपने स्वरूप करणा है सो ह
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