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समीक्षा
प्रमाण ननिका लक्षण तथा भेद तो आगे करसी तहां प्रमाण दोय प्रकार है । एक स्वार्थ तो ज्ञान स्वरूप कहिय । बहुरि परार्थ वचन रूप कहिये तामें चार ज्ञान तो स्वार्थ रूप है। बहुरि श्रुत प्रमाण ज्ञानरूपी है भी वचन रूपी भी है । तातें स्वार्थ परार्थ दोऊ. प्रकार है बहुरि श्रुत ज्ञान के भेद विकल्प हैं ते नय हैं । इहां कोई पूछे हैं नय शब्द के अक्षर थोडे हैं तातें द्वदसमास में पर्व निपात चाहिये ताका उत्तर-प्रमाण प्रधान है । पूज्य है सर्व नय है ते प्रमाण के अंश है जातें ऐसा कया है वस्तु को प्रमाण तै ग्रहण , करि बहुरि सत्व, असत्व नित्य, अनित्य इत्यादि परिणाम के विशेषते अर्था का अवधारण व.र ना सो नय है । बहुरि प्रमाण सकल धर्म अर धर्मा कूविषय को है सो ही कहा है। सकला- . देश तो प्रमाणाधीन है। बहुरि विकलादेश नयाधीन हैं तातै प्रमाण ही का पूर्व निपात युक्त है ! बहुरि नय के दो भेद कहे तहां पर्यायार्थिक नय कार तो भाव तत्व ग्रहण करना। बहुरि नाम स्थापना द्रव्य ये तीन द्रव्यार्थिक नवं करि प्रहण करना जाते द्रव्यार्थिक है सो मामान्य कू ग्रहण करे है । द्रव्य है विषय प्रयोजन जाका ताकद्रव्यार्थिक कहिये । पर्याय है विषय प्रयोजन जाका मो र्यायार्थिक कहिये ये मर्व भेले प्रमाण करि जाने ।
प्रश्न-जो जोवादिक का अधिगम ( ज्ञान ) तो प्रमाण नयनिते करिये बहुरि प्रमाण नयनिका अधिगम काहंते करिये ? जो प्रमाण नयनितें करिये तो अनवस्था दूषण होयगा । बहुरि. आपही करिये तो सर्वही पदार्थानिका आपही ते होगा, प्रमाण नय निष्फल होहिगे । ताका समाधान--जो प्रमाण नयनिका अधिगम अभ्यास अपेक्षा तो अाप ही ते कह्या है । बिना अभ्यास अपेक्षा परते कह्या है तातें दोष नहीं । फेर प्रश्न--जो प्रामण तो अंशी को ग्रहण करें है अरु नय अशकू ग्रहण करे हैं सो अंशानते
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