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जैन तत्व मीमामा की
जुदा पदार्था तो अंशी भासता नहीं अंशानक समुदाय विषे अंशी की कल्पना ही यह कल्पना है सो अमत्यार्थ है । नाका उत्तर-- प्रथम तो प्रत्यक्ष वुद्धि विषे अंशी ग्थूल स्थिर एक साक्षात् प्रतिभासै है ताको कल्पित कैसे कहिये बहुरि जो कल्पित होय तो एक कल्पनाते द्वितीय कल्पना होते ताका सद्भाव इन्द्रिय गोचर कैसे रहे ? बहुरि कल्पित के अर्थक्रिया शक्ति कहांते होय ? बहरि कल्पित प्रत्यक्ष ज्ञानमें स्पष्ट कैसे भासे ? ताते अंशनिका समुदाय रूप अंशी सत्यार्थ है । कल्पित नाहीं । अंश अंशी विषे कथंचित भेद है कथंचित् अभेद है । जे सर्वथा भेद ही तथा अभेद ही माने हैं तिनिकी मानिवेमें दूषण भावे हैं स्याद्वादीनिके दूषण नाही । इहा उदाहरण-जैसे एक मनुष्य जीव नाम वस्तु है ताके देहविषे मस्तक ललाट-कान-नाक-नेत्र-मुख-होठ-गला-कांधा भुजा हस्त-अंगुलो-छाती-उदर-नाभी नितंव--लिंग जांघ--गोडे पीडी टेकुण्या-पग-पगथली अंगुली आदि अङ्ग है उपांग हैं। तिनिक अवयव भी कहिये । अंश भी कहिये । धर्मकहिये । वहुरि गोरा सावला आदि वर्ण है तिनिकूगुण कहिये । वाल कुमार जुवान बूढा आदि अवस्थाकू पर्याय कहिये ! सो सर्वका समुदाय कथंचित भेदाभेद रूप वस्तु है । ता अपयवी कहिये, अंगा कहिये अंशी कहिये धर्मी कहिये । ऐस अंशीको कल्पित कम कहिये कल्पित होयतो प्रत्यक्ष वुद्धिमें स्पष्ट कैसे भासे ? वहरि अनेक कार्य करने की शक्ति रूप जो अर्थ क्रियाकी शक्ति कैस होगी? सर्वथा भेदरूप अंशनिही में पुरुष के करने योग्य कार्य की शक्ति नाही । वहुरि इस मनुष्य नाम को अंशोकी कल्पना टि अन्य वस्तुको कल्पना होते वह मनुष्य वस्तु उत्तर कालमें जैमा का तैसा काहेकू रहता ? तातै अंशी सत्यार्या है ! सोही प्रमाण गांचर भेदाभेदरूप भासै हैं । वहुरि नय है ते अशनि ग्रहण कर है। तहां
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