Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका धर्म कहा जाता है तो यह कहना होगा कि बुद्ध और महावीरसे पहले भारतवासियोंका धर्म हिन्दू धर्म न था-वह हिन्दू , बौद्ध जैन सभी मार्गोंका पूर्वज था। यदि उस कालके धर्मको वैदिक कहा जाये तो भी यह विचार ठीक नहीं कि उसमें जैन और बौद्ध मार्गोंके बीज नहीं थे। भारतवर्षका पहला इतिहास बौद्धों और जैनोंका भी वैसा ही है जैसा वेदका नाम लेनेवालोंका। उस इतिहासमें प्रारम्भिक बौद्धों और जैनोंको जिन महापुरुषोंके जीवन
और विचार अपने चरित्रसम्बन्धी आदर्शोंके अनुकूल दीखे, उन सबको उन्होंने महत्त्व दिया और महावीर और बुद्धके पूर्ववर्ती बोधिसत्त्व और तीर्थङ्कर कहा। वास्तवमें वे उन धर्मों अर्थात् आचरण सिद्धान्तोंके प्रचारक या जीवनमें निर्वाहक थे जिनपर बादमें जैन और बौद्ध मार्गोंपर बल दिया गया, और जो बादमें बौद्ध जैन सिद्धान्त कहलाये। वे सब बोधिसत्त्व और तीर्थङ्कर भारतीय इतिहासके पहले महापुरुष रहे हों या उनमेंसे कुछ अंशतः कल्पित रहे हों। इतने पूर्वज महापुरुषोंकी सत्तापर विश्वास होना यह सिद्ध करता है कि भारतवर्षका इतिहास उस समय भी काफी पुराना हो चुका था और उसमें विशेष आचार मार्ग स्थापित हो चुके थे। फिलहाल तीर्थङ्कर पार्श्वकी ऐतिहासिक सत्ता आधुनिक आलोचकोंने स्वीकार की है। बाकी तीर्थङ्करों और बोधिसत्त्वोंके वृत्तान्त कल्पित कहानियोंमें इतने उलझ गये हैं कि उनका पुनरुद्धार नहीं हो पाया। किन्तु इस बातके निश्चित प्रमाण हैं कि वैदिकसे भिन्न मार्ग बुद्ध और महावीरसे पहले भी भारत में थे। अहँत् लोग बुद्धसे पहले भी थे और उनके चैत्य भी बुद्धसे पहले थे। उन अर्हतों और चैत्योंके अनुयायी व्रात्य कहलाते थे जिनका उल्लेख अथर्व वेदमें है' (भा० इ० रू. पृ० ३४८)।
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