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युग-मीमांसा
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सन् १६५६ ई० में औरंगजेब अपने भाइयों को गृह-युद्ध में परास्त कर और अपने पिता शाहजहाँ को बन्दी बनाकर मुगल साम्राज्य का स्वामी बना । वह शासक के रूप में क्रूर, धर्मान्ध एवं अदूरदर्शी था। उसने अपने पूर्वजों की उदार नीति का अनुसरण नहीं किया। उसकी स्वार्थपरक, कट्टर नीति से ऊबकर आगरा और मथुरा के समीप जाटों ने, नारनौल में सतनामी सम्प्रदाय के अनुयायियों ने, पंजाब में सिक्खों के गुरु तेगबहादुर और गुरु गोविन्दसिंह ने, अवध में वैस राजपूतों ने, राजपूताना में दुर्गादास राठौड़ ने और दक्षिण में मराठों ने सतत विद्रोह किये। उसके ५० वर्ष तक के शासनकाल में अशान्ति, असंतोष, अव्यवस्था, उथल-पुथल, संघर्ष एवं षड़यंत्रों का बोलबाला रहा । उत्तरोत्तर अराजकता बढ़ने से विशाल मुगल साम्राज्य की जड़ें हिलने लग गयीं और वह द्रुत गति से पतनोन्मख होता गया। ____सन् १७०७ ई० में औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात् बहादुरशाह प्रथम से लेकर बहादुरशाह द्वितीय (१६५७ ई०) तक नौ मुगल सम्राट् हुए, परन्तु प्राय: उन सभी में सुसंस्कृति, प्रतिभा, पौरुष, आत्मबल एवं राजनीतिक क्षमता का अभाव था । उनमें से अधिकांश व्यक्तित्वहीन, विलासी, अकर्मण्य तथा दूसरों की कठपुतली मात्र थे। उनके डेढ़सौ वर्षों का शासनकाल भारतीय इतिहास का अन्धकार युग है, मुगल साम्राज्य के पतन और पराभव का युग है। षड्यंत्र और विश्वासघात, अंत:कलह और बाह्य आक्रमण, लूट-खसोंट और मारकाट आदि जैसी असंख्य वीभत्स घटनाएं इस काल की छाती पर अंकित हैं।
इसी समय नादिरशाह का प्रसिद्ध आक्रमण हुआ। यह आक्रमण भारतीय इतिहास में विकराल कत्ले-आम और भयकर लूट का पहला उदाहरण था । इसने भारतीय अर्थव्यवस्था पर ही कुठाराघात नहीं किया, १. देखिए-इरविन : लेटर मुगल्स, पृष्ठ ३११ ।
नादिरशाह दिल्ली के प्रमुख बाजार की सूनहली मस्जिद में बैठकर नौ घंटे तक लगातार दिल्ली-निवासियों का निर्मम संहार देखता रहा । अन्तत: मुहम्मदशाह और उसके मंत्रियों के अनुनय-विनय करने पर,
(क्रमशः)
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