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युग-मीमांसा
समाज और साहित्य परस्पर सापेक्ष हैं । यह असम्भव है कि युगीन परिस्थितियाँ साहित्य को प्रभावित न करें । अवश्य ही प्रत्येक देश के विभिन्न कालों की सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक आदि परिस्थितियों का प्रभाव उस देश के साहित्य पर पड़ता है । '
विक्रम संवत् १७०० से १६०० तक देश में अनेक परिस्थितियों ने अंगड़ाई ली। कुछ उभरीं और कुछ नये रूप में प्रस्तुत हुईं। उनमें से प्रमुख राजनीतिक अवस्था थी ।
राजनीतिक अवस्था
इस युग का भारत राजनीतिक दृष्टि से मुगल साम्राज्य के चरम उत्कर्ष एवं अवसान का समय है । इस समय मुगल सम्राट् शाहजहाँ भारत के राज्य - सिंहासन पर आसीन था । उसने जहाँगीर से जो साम्राज्य विरासत में पाया, उसके विकास में उसने भी योग दिया । वह सीमाओं को सुरक्षित रखने में सफल रहा, किन्तु पर्याप्त बुद्धि-कौशल से काम लेते हुए तथा प्रचुर धन-जन की हानि सहते हुए भी वह कंधार को खो बैठा। वैसे उसने बड़ी दूरदर्शिता से राज्य के 'राष्ट्रीय' स्वरूप को अक्षुण्ण रखा। यों उसके शासकीय जीवन में निरन्तर छुट-पुट संघर्ष होते रहे, परन्तु उनसे देश की आन्तरिक व्यवस्था और शान्ति भंग नहीं हुई । सामान्यतः उसका राज्यकाल शान्ति एवं सुव्यवस्था का काल है ।
देखिए - डॉ० श्यामसुन्दर दास : हिन्दी साहित्य, पृष्ठ २५ ।
२. डॉ० ज्योतिप्रसाद : भारतीय इतिहास पर एक दृष्टि, पृष्ठ ५१२ ।
३.
देखिए - डॉ० रामप्रसाद त्रिपाठी : मुगल साम्राज्य का उत्थान और पतन, पृष्ठ ३२६-३७० ।
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