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जैन-दर्शन के नव तत्त्व
उपयोग
दर्शनोपयोग
ज्ञानोपयोग
१-चक्षुदर्शन
२-अचक्षुदर्शन ३-अवधिदर्शन
४-कैवलदर्शन
१-मतिज्ञान २-श्रुतज्ञान ३-अवधिज्ञान ४-मनःपर्यायज्ञान ५-केवलज्ञान
मति, श्रुत और अवधि ये तीन ज्ञान मिथ्या भी होते हैं। इन तीनों को मिलाकर आठ प्राकर का ज्ञानोपयोग होता है।
जीव के अन्य लक्षण जिसमें चैतन्य है उसे जीव कहते हैं। उपयोग-लक्षण और चैतन्य-लक्षण में कोई भेद नहीं है। जो अपने इन गुणों को किसी भी अवस्था में नहीं छोड़ता, जो निद्रावस्था में, जागृतावस्था में और स्वप्नावस्था में हमेशा इन गुणों से युक्त होता है, उसे आत्मा या जीव कहते हैं। जिसमें ज्ञानशक्ति नहीं है वह जड़ अथवा अजीव है। जिसमें ज्ञानशक्ति है, जो भिन्न-भिन्न प्रकार के कर्म करने वाला, कमों के फल भोगने वाला, कमों के कारण भित्र-भिन्न गतियों में जाने वाला और समस्त कमों को नष्ट कर निर्वाण, मोक्ष, या परमात्म पद को प्राप्त करने वाला है वह आत्मा जीव है।२७
. जीव सुख-दुःख में अनुकूलता-प्रतिकूलता आदि की अनुभूति करता है। जीव के अलावा अन्य पदार्थ स्व-पर का ज्ञान और हिताहित का विवेक नहीं कर सकते। इसलिए जीव का लक्षण चैतन्य बताया गया है। जीव सुख-दुःख को भोगने वाला, आठ कमों का कर्ता और भोक्ता शांश्वत और नित्य है। देखना और जानना यह जिसका स्वभाव है, वह जीव है। ज्ञानी और ज्ञानगुण भित्र नहीं हैं। वस्तुतः दोनों में अभिनता है। उसी प्रकार जीव और चैतन्य अभिन्न हैं।
___ इंद्रियाँ और शरीर जीव नहीं हैं अपितु शरीर में जो चैतन्य है, वह जीव है। जीव सुख की अभिलाषा करता है और दुःख से डरता है। हित-अहितकारी
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