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जैन दर्शन के नव तत्त्व
२०- अणवंकखवत्तिया क्रिया : अपेक्षा के बिना काम करना तथा इहलोक और परलोक के विरुद्ध काम करना । हिंसा में धर्म कहने, साथ ही महिमापूजा के लिए तप, संयम आदि का आचरण करने से लगने वाली क्रिया । इसके दो भेद हैं (१) स्वयं हलचल करने से लगने वाली क्रिया और (२) दूसरे को हलचल करने में लगाने से लगने वाली क्रिया ।
२१- अणापओगवत्तिया क्रिया : दो वस्तुओं का संयोग करवाने से लगने वाली क्रिया । इसके दो भेद हैं- (१) सजीव और ( २ ) अजीव ।
२२- सामुदाणया क्रिया : कई लोग मिलकर जो सामुदायिक कार्य करते हैं, उससे लगने वाली क्रिया । जैसे- कंपनी, नाटक, व्यापार आदि में हँसना, खेलना, प्रशंसा करना इत्यादि कर्मबंधों से लगने वाली क्रिया । इसके तीन भेद हैं (१) सान्तर,
(२) निरंतर तथा (३) तदुभय ।
२३- पेज्जवत्तिया (प्रेमप्रत्यया) क्रिया : प्रेम (अनुराग) के कारण लगने वाली क्रिया । इसके दो भेद हैं- (१) मायाचार करने से लगने वाली क्रिया एवं (२) लोभ करने से लगने वाली क्रिया ।
२४ - दोसवत्तिया (द्वेषप्रत्यया) क्रिया : द्वेष भावना से लगने वाली क्रिया । इसके भी दो भेद हैं (१) क्रोध करने से लगने वाली क्रिया और (२) मान करने से लगनेवाली क्रिया ।
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२५- इरियावहिया क्रिया : जो क्रिया ईर्यापथ अर्थात् गमनागमन से लगती है उसे इरियावहिया क्रिया कहते हैं । इसके दो भेद हैं- (१) छद्मस्थ अकषाय साधु को चलने-फिरने से लगने वाली क्रिया तथा ( २ ) संयोगकेवली अरिहंत को लगने वाली क्रिया । कर्मबंध के कारण उत्पन्न हुए दुष्ट व्यापार- विशेष अर्थात् क्रिया (सांपरायिक) होती है। ऊपर की पच्चीस क्रियाएँ कर्मबंध की कारण हैं, इसलिए सम्यग्दृष्टि जीव को उनसे दूर रहने का प्रयत्न करना चाहिए।
उपर्युक्त भेदों को मिलाकर आस्रव के बयालीस भेद होते हैं इन बयालीस भेदों से जीव को अशुभ कर्म भोगने पड़ते हैं।
प्रश्न- व्याकरण और आस्रवद्वार
प्रश्न- व्याकरण दसवाँ जैन आगम ( शास्त्र ) है । इसमें दो श्रुतस्कन्ध हैं (१) आस्रवद्वार - श्रुतस्कन्ध और ( २ ) संवरद्वार श्रुतस्कन्ध ।
प्रथम श्रुतस्कंध में आनव-पंचक का और द्वितीय श्रुतस्कंध में संवर- पंचक का वर्णन है । सुधर्मा स्वामी ने अपने शिष्य जंबुस्वामी से कहा "हे जंबु ! प्रश्नव्याकरणशास्त्र के दो श्रुतस्कंध हैं। एक श्रुतस्कंध आम्रवद्वार - श्रुतस्कंध है। उसमें भगवान् ने आस्रव-पंचक का वर्णन किया है और द्वितीय श्रुतस्कंध में संवर- पंचक का वर्णन है। उसी में भगवान् ने कहा है कि आस्रव-पंचक का त्याग
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