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जैन-दर्शन के नव तत्त्व
नहीं, उपाधि नहीं, उसी प्रकार वहाँ सूर्य, चन्द्र और तारे भी नहीं हैं, बिजली नहीं और अग्नि भी नहीं है।६४
गौतम बुद्ध ने भी उदान में निर्वाण का ऐसा ही स्वरूप कहा है। उन्होंने कहा है कि वहाँ जल-स्थल नहीं, वायु-प्रकाश नहीं, देश-काल नहीं, शून्यता निबोध नहीं, सूर्य-चाँद नहीं, इहलोक-परलोक नहीं, उसे मैं आगमन भी नहीं कह सकता और निर्गमन भी नहीं कह सकता। वहाँ जन्म-मृत्यु नहीं, गति-स्थिति नहीं, आधार नहीं, अखंड प्रवाह नहीं, यही दुःख से निवृत्ति की स्थिति है। वह स्थानातीत है, कालातीत है, क्योंकि वह परिवर्तनहीन है। वहाँ कर्म और दुःख नहीं है। मोक्ष-मार्ग के संबंध में मान्यनाएँ :
उपयोग स्वरूप और श्रेयोमार्ग से प्राप्तव्य मोक्ष के स्वरूप को जानने की इच्छा वैसे ही होती है, जैसे आरोग्य लाभ के लिए रोग चिकित्सा विधि की खोज करता है। वस्तुतः आत्मद्रव्य की सिद्धि होने पर ही मोक्षमार्ग की खोज होती है।६६
धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष इन चार पुरुषार्थों में से मोक्ष यही अंतिम और प्रमुख पुरुषार्थ है।६७ ।।
मोक्ष के संबंध में सारे विचारक एकमत है। सभी दुःखनिवृत्ति को ही मोक्ष मानते हैं, परन्तु मोक्ष के मार्ग के बारे में मतभेद हैं। जिस प्रकार अलग-अलग दिशाओं से पाटण शहर में जाने वाले यात्रियों का पाटण शहर के बारे में वैमत्य नहीं होता, परन्तु अपनी दिशा के अनुसार उसके मार्ग के बारे में मतभिन्नता होती है, उसी प्रकार विचारको का सर्वोच्च लक्ष्य मोक्ष के संबंध में वेमत्य नहीं होता, परंतु उसके मार्ग के बारे में मतभिन्नता होती है। कुछ विचारक ज्ञान को ही मोक्ष मार्ग मानते हैं और कुछ ज्ञान और विषयविरक्तिरूप वैराग्य को मोक्षमार्ग मानते हैं। कुछ क्रिया (कर्म) को ही मोक्ष मार्ग मानते हैं। ऐसे क्रियावादियों के अनुसार नित्यक्रम करने पर ही निर्वाण की प्राप्ति होती है।
मोक्ष के स्वरूप के बारे में विचारकों की अनेक कल्पनाएँ हैं। बौद्ध रूप, वेदना, संज्ञा, संस्कार और विज्ञान इन पाँच स्कंधों के निरोध को ही मोक्ष मानते हैं। सांख्य-प्रकृति और पुरुष इनका भेद जानने पर शुद्ध चैतन्य स्वरूप में स्थिर होने को मोक्ष मानते हैं। नैयायिक बुद्धि, सुख-दुःख, इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, अधर्म
और संस्कार इन आत्मा के विशेष गुणों के नाश को मोक्ष कहते हैं। फिर भी कर्मबंधन के विनाश के बाद होनेवाली स्वरूप प्राप्ति ही मोक्ष है इस संबंध में सारे विचारकों में एकमत है। मोक्ष अवस्था में कर्मबंध का समूल नाश होता है, यह बात सारे विचारक मानते हैं।
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