Book Title: Jain Darshan ke Navtattva
Author(s): Dharmashilashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 465
________________ ४३८ जैन-दर्शन के नव तत्त्व सन्दर्भ संकेत- उ.नि. = उपरिनिर्दिष्ट १. क) सं. पं. महादेवशास्त्री जोशी-भारतीय संस्कृति कोश-खंड ३, पृ. ६१६-६२० ख) देवेन्द्रमुनि शास्त्री - जैनदर्शन स्वरूप और विश्लेषण - पृ. ७८ २. सं. पं. महादेवशास्त्री जोशी-भारतीय संस्कृति कोश-खंड ३, पृ. ६२०. ३. देवेन्द्रमुनि शास्त्री - जैनदर्शन स्वरूप और विश्लेषण - पृ. ६१-६५.. ४. क) सं. पं. महादेवशास्त्री जोशी - भारतीय संस्कृति कोश - खंड ३, (गाहडवाल ते तंत्रशास्त्र, ६२० पृ.) ख) सं. देवीदास दत्तात्रेय वाडेकर - मराटी तत्त्वज्ञान-महाकोश - प्रथम खंड, पृ. ३६६. ५. क) सं. पं. महादेवशास्त्री जोशी - भारतीय संस्कृति कोश - खंड ३, (गाहडवाल तंत्रशास्त्र, पृ. ६२०). ख) देवेन्द्रमुनि शास्त्री - जैनदर्शन स्वरूप और विश्लेषण - पृ. १०-११. ६. सं. पं. महादेवशास्त्री जोशी - भारतीय संस्कृति कोश - खंड ३, (गाहडवाल, तंत्रशास्त्र)-पृ. ६२०. माधवाचार्य-सर्वदर्शनसंग्रह-(भाष्यकार-प्रो. उमाशंकर शर्मा 'ऋषि')-पृ. ६. देहच्छेदो मोक्षः । देहात्मवादे च स्थूलोऽहं, कृशोऽहं, कृष्णोऽहम्' इत्यादी सामानाधिकरण्योपपतिः । देवेन्द्रमुनि शास्त्री - जैनदर्शन स्वरूप और विश्लेषण - पृ. ५०६-५०७. सं. पं. महादेवशास्त्री जोशी - भारतीय संस्कृति कोश - खंड ३, (गाहडवाल, तंत्रशास्त्र)-पृ. ३८३-८५. क) चैतन्यविशिष्टः कायः पुरुषः । ख) परलोकायाची जीवः प्रत्यक्षेण नानुभूयते । परलोकिनोऽभावात् परलोकाभावः ।।। १०. क) अनु. भिक्षु जगदीशकाश्यप - मिलिन्दप्रश्न - पृ. ११० ख) आर. डी. वाडेकर - मिलिन्दप...हो -पृ. ८६-६० (विमतिच्छेदनप....हो - ३-०४) राजा आह - भन्ते नागसेन, वि...अणंति वा ................. तेन हि महाराज भूतस्मिं जीवोनूफ्लभतीति ।। ११. संगमलाल पाण्डेय - भारतीय दर्शन की कहानी - पृ. १४०. १२. अनु. पं. मुनिश्री सोभाग्यमलजी म. - आचारांगसूत्र (प्रथम श्रुतस्कंध), अ. ३, उ. ४, पृ. २६७ ८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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