Book Title: Jain Darshan ke Navtattva
Author(s): Dharmashilashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 478
________________ चित्रों की जानकारी चित्रों का उद्देश्य तत्त्वों के संबंध में की गई कल्पना को अधिक स्पष्ट करने के लिए कुछ चित्र दिए गये हैं । इन चित्रों में रंग, प्राणी आदि सब काल्पनिक हैं । कलाकार को कुछ कल्पनाएँ देकर ये चित्र तैयार करवा लिए हैं । सौन्दर्यशास्त्र का इससे कुछ भी संबंध नहीं है । रेखाचित्रों का उपयोग किसी भावना को व्यक्त करने के लिए होता है, इस हेतु अपनी ही कल्पना को विस्तृत कर इन चित्रों में उतारने का प्रयत्न सुस्पष्ट होगा, यही इन चित्रों का मुख्य उद्देश्य है । चित्र क्रमांक विषय जीव की चार गतियाँ 1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8. 9. 10. चित्रों का स्पष्टीकरण 1. जीवतत्त्व - - चित्र क्र. 1 - जीव की चार गतियाँ जीव की चार गतियों की कल्पना अधिक स्पष्ट करने के लिए देव, नारक, तिर्यंच और मनुष्य इन चार गतियों का चित्र दिया है और उसमें यह स्पष्ट किया है कि इन चार गतियों में से केवल मनुष्य ही मोक्ष को जा सकता है । अन्य तीन गतियों में होने वाले मोक्ष को नहीं जा सकते । Jain Education International अजीव तत्त्व प्रकार बंध-मुक्ति-प्रक्रिया तत्त्व जीव अजीव आस्रव, संवर, निर्जरा, बंध, मोक्ष संवर निर्जरा बंध मोक्ष मोक्ष मोक्ष मोक्ष अनित्य भावना बाह्य तप अभ्यन्तर तप बंध और कर्म सम्यक्त्व सम्यग्ज्ञान सम्यग्ज्ञान के भेद मोक्ष मार्ग 2. अजीव तत्त्व : चित्र क्र० 2 अजीव के भेद : इसमें अजीव के पाँच भेद बताए गए हैं- 1. धर्म, 2. अधर्म, 3. आकाश, 4. काल और 5. पुद्गल । इसके स्पष्टीकरण के लिए चित्र में धर्म अर्थात् गति सहायक तत्त्व (उदा० गतिमान मछलियाँ ) 2. अधर्म अर्थात् स्थिति सहायक तत्त्व (उदा० बैठा हुआ मनुष्य), 3. आकाश अर्थात् स्थान देनेवाला द्रव्य । इसके दो भेद : लोकाकाश और ( ४४१ ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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