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७) बुद्धबोधित सिद्ध
आचार्य आदि का उपदेश सुनकर हुए
सिद्ध !
८) स्वलिंग सिद्ध अन्यलिंग सिद्ध १०) गृहस्थलिंग सिद्ध
११) स्त्रीलिंग सिद्ध १२) पुरुषलिंग सिद्ध १३) नपुंसकलिंग सिद्ध १४) एक सिद्ध १५) अनेक सिद्ध इन पंद्रह
जैन साधु के वेष में हुए सिद्ध । जैनेतर साधु के वेष में हुए सिद्ध । गृहस्थ के वेष में हुए सिद्ध । स्त्री शरीर से हुए सिद्ध । पुरुष शरीर से हुए सिद्ध । नपुंसक शरीर से हुए सिद्ध । एक समय में हुए एक सिद्ध । एक समय में हुए अनेक सिद्ध ।
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प्रकार के सिद्धों का निर्वाणसुख, मोक्षसुख पूर्णतः एक जैसा ही होता है । उसमें किसी तरह का अंतर नहीं होता । इन सिद्धों के भेदों में सब धर्मों के सिद्ध आत्माओं का समावेश होता है और इसीलिए जैन धर्म सर्वधर्म संग्राहक है, ऐसा कहा जाता है।
ये सारे सिद्ध सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र के कारण सिद्ध होते हैं या मोक्ष प्राप्त करते हैं । त्रिविध मोक्षमार्ग के बिना किसी को भी सिद्धगति प्राप्त नहीं होती ।
सिद्ध आत्माओं के नाम :
नाम ये हैं १) सिद्ध
सब कर्मों से मुक्त हुए सिद्ध आत्माओं के अनेक नाम हैं। उनमें से कुछ
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२) बुद्ध
३) मुक्त ४) परिनिवृत्त
५) सर्वदुःखप्रहीण
६) अन्तकृत
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जैन दर्शन के नव तत्त्व
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जो कृतार्थ हुए हैं, वे सिद्ध हैं अथवा जो लोकाग्र में स्थित हुए हैं और जिनका पुनरागमन नहीं होता, वे सिद्ध हैं अथवा जिनका कर्म-मल ध्वस्त हुआ है, जो कर्मप्रपंच से मुक्त हुए हैं, वे सिद्ध हैं जिन्हें संपूर्ण ज्ञान और संपूर्ण दर्शन है और जो सब कर्मों के क्षय से मुक्त हुए हैं, वे बुद्ध हैं ।
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जिनका कोई भी बंधन शेष नहीं, वे मुक्त हैं । कर्मकृत विकारों से सर्वथा रहित होकर जो स्व स्वरूप में निमग्न है। वे परिनिवृत्त हैं ।
जो सब दुःखों का अंत करते हैं, वे सर्वदुःख प्रहीण हैं ।
जिन्होंने पुनर्भव का अंत किया, वे अन्तकृत हैं 1
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