Book Title: Jain Darshan ke Navtattva
Author(s): Dharmashilashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 449
________________ ४२२ जैन दर्शन के नव तत्त्व अद्वैत वेदान्त आत्मा को सत्, चित् और आनंदस्वरूप मानता है । सांख्य अनेक पुरुषों को मानता है, परन्तु ईश्वर को नहीं मानते हैं । अद्वैत केवल एक ही आत्मा को मानता है। चार्वाक दर्शन आत्मा की सत्ता नहीं मानता। वह चैतन्ययुक्त शरीर को ही आत्मा मानता है। बौद्ध दर्शन आत्मा को ज्ञान, अनुभूति और संकल्प की प्रतिक्षण परिवर्तन होने वाली चेतनधारा मानता है। इसके विपरीत जैन दर्शन में आत्मा को अजर और अमर माना गया है। ज्ञान यह आत्मा का विशिष्ट गुण है। जैन दर्शन के अनुसार आत्मा यह स्वभावतः अनन्तज्ञान, अनन्तदर्शन, और अनन्तसुख अनन्तशक्ति से युक्त है। सब दर्शनों के जीवात्मा विषयक सिद्धान्तों का स्वरूप देखने पर पता चलता है कि उनमें कहीं सुसंवाद है और कहीं विसंवाद है । इसलिए उन सब में अनेकता में एकता और एकता में अनेकता दिखाई देती है। फिर भी जैन धर्म में जीवतत्त्व के विषय में अत्यंत विस्तृत और सूक्ष्म विवेचन किया गया है। सभी जीव एक समान है, इसलिए गलती से भी किसी प्राणी का घात करना या उसे किसी भी प्रकार से उसे कष्ट पहुँचाना अनुचित है, यह हिंसा है। 'जीव' तत्त्व की चर्चा के प्रसंग में निम्नलिखित विषयों का वर्णन है जीव तत्त्व ही प्रथम क्यों? आत्मवाद की उत्क्रान्ति का इतिहास, अन्य दर्शनों की मान्यताएँ, जीव का लक्षण, उपयोग के भेद, जीव के अन्य लक्षण, जीव के प्रकार, चेतना के प्रकार, ज्ञान के प्रकार, जीव के भाव, जीव की शाश्वतता, संसारी जीवों के प्रकार, त्रस के प्रकार, चार- गति, स्थावर जीव के प्रकार, शरीर के प्रकार, देह परिमाण जीव, आत्मा के अस्तित्व की सिद्धि, विभिन्न वैज्ञानिकों के आत्मा के विषय में विचार, आधुनिक विज्ञान और जीवतत्त्व आदि के विषयों का विस्तृत विवेचन किया गया है । 1 इस विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि प्रायः सभी भारतीय दर्शनों ने आत्मा का अस्तित्व माना है और अपनी-अपनी दृष्टि से उसका विवेचन किया है। फिर भी जैन दर्शन का जीव तत्त्व का विवेचन अत्यन्त गहन और सूक्ष्म है 1 (२) अजीवतत्त्व : जीव के विरुद्ध लक्षण वाला अजीवतत्त्व है । जीव चेतन है, तो अजीव अचेतन है। अजीव तत्त्व को भी जैन धर्म में विस्तार से स्पष्ट किया गया है। अन्य दर्शनों ने इस तत्त्व की ओर विशेष ध्यान नहीं दिया है ऐसा प्रतीत होता है। जैन धर्म की दृष्टि वैज्ञानिक होने से उसमें किसी भी विषय को सूक्ष्मता से स्पष्ट किया जाता है । यही जैन दर्शन का वैशिष्ट्य है। अजीव तत्त्व के (१) धर्म, (२) अधर्म, (३) आकाश, (४) काल और (५) पुद्गल - ये पाँच भेद हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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