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जैन-दर्शन के नव तत्त्व
का कारण है। जन्म और मृत्यु की परम्परा का आत्यंतिक अभाव होना यही सारी साधनाओं का लक्ष्य है। यही मोक्ष है।
उपनिषदों में मैत्रेयी भौतिक संपत्ति से असंतोष प्रकट करके सीधा प्रश्न पूछती है - "जिसके योग से मुझे अमरत्व प्राप्त नहीं होगा ऐसी संपत्ति लेकर मैं क्या करू?" यह विधान उपनिषदों के ऋषियों की अध्यात्म भावना को व्यक्त करता है। उपनिषदों के ऋषि मोक्ष के अलावा किसी भी वस्तु से संतुष्ट होना नहीं चाहते।
___ आस्तिक दर्शन के समक्ष ऐसा प्रश्न उपस्थित हुआ है कि क्या 'यह आत्मा को कभी इस प्रकार की अवस्था प्राप्त होगी कि जिससे पुनर्जन्म या जन्मांतर नष्ट होगा? इस प्रश्न के उत्तर में यह कहा गया है कि, मोक्ष, मुक्ति या निर्वाण यह ऐसी स्थिति है कि जहाँ पहुँचने पर आत्मा का पुनर्जन्म नष्ट हो जाता है। उसका परिणाम यह हुआ कि आत्मा के चरम अमरत्व में आस्था रखनेवाले या विश्वास रखने वाले आत्मिक दर्शनों ने मोक्ष की स्थिति एक मत से मान ली
है।
न्याय-वैशेषिक दर्शन का मोक्ष तत्त्व :
न्याय और वैशेषिक दर्शन मानते हैं कि जीवात्मा के बुद्धि, सुख-दुःख आदि गुण अनित्य हैं और उनके कारण जीवात्मा भी विकारी है। जीवात्मा कूटस्थ नहीं है। शुद्ध आत्मा का स्वरूप जड़ के समान है। उनके मतानुसार मोक्ष यह आत्मा की अचेतन अवस्था है। क्योंकि चैतन्य आत्मा एक आगंतुक धर्म है, स्वरूप लक्षण नहीं। जब आत्मा का शरीर और मन के साथ संयोग होता है, तब चैतन्य गुण का उद्गम होता है मोक्ष की अवस्था में आत्मा का शरीर एवं मन से वियोग होने पर चैतन्य गुण का भी अभाव होता है। मोक्ष की प्राप्ति तत्त्वज्ञान के कारण होती है। यह दुःख के आत्यंतिक उच्छेद की अवस्था है। वेदान्त दर्शन का 'मोक्ष' तत्त्व :
वेदान्त दर्शन मोक्ष को जीवत्मा और ब्रह्म के एकात्मभाव की उपलब्धि मानता है। क्योंकि परमार्थतः आत्मा ब्रह्म ही है। वह विशुद्धतः सत्-चित्-आनन्द स्वरूप है। बंधन मिथ्या है। अविद्या अर्थात् माया यही बंधन या संसार है, ऐसा वे मानते हैं। आत्मा अज्ञान के कारण शरीर, इन्द्रियाँ, मन, बुद्धि और अंहकार इनमें फँसा है। यही मिथ्या तादत्म्य बंधन है। अज्ञानी व्यक्ति बंधन को प्राप्त होता है
और ज्ञान से इस बंधन से मुक्त हो जाता है। 'मोक्ष' यह आत्मा की स्वाभाविक अवस्था है। वेदान्त के मतानुसार यह चैतन्य रहित अवस्था नहीं है, परंतु सत्-चित्-आनंद की अवस्था है। यह जीवात्मा के द्वारा ब्रह्म भाव की प्राप्ति हैं।
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