Book Title: Jain Darshan ke Navtattva
Author(s): Dharmashilashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 439
________________ ४१२ जैन-दर्शन के नव तत्त्व चैतन्यविशिष्ट देह ही आत्मा (पुरुष) है। परलोक में जानेवाला जीव प्रत्यक्ष दिखाई नहीं देता, उसका अभाव होने से परलोक का भी अभाव है। बौद्ध दर्शन का जीवतत्त्व : अनात्मवाद यह बौद्ध दर्शन का मत है। बुद्ध अनात्मवादी थे। इस अनात्मवाद पर ही बौद्ध धर्म स्थित है। शाश्वत आत्मवाद का बुद्ध ने खंडन किया ऐसी कोई नित्य वस्तु नहीं है जिसे हम 'आत्मा' कह सकेंगे। रूप, वेदना, संज्ञा, संस्कार और विज्ञान-इन पाँचों को मिलाकर हमारा व्यक्तित्व बना हुआ है। बुद्ध के मतानुसार रूप, वेदना, संज्ञा, संस्कार और विज्ञान को आत्मा समझना यह सबसे बड़ी भ्रान्ति है। क्योंकि ये दुःखरूप हैं। दूसरी बात यह है कि ये सब क्षणभंगुर हैं। इन्हें आत्मा नहीं कहा जा सकता है। जब ये आत्मा नहीं हैं, तो इन्हें अपना मानना उचित नहीं है। मिलिन्द-प्रश्न में राजा मिलिन्द और नागसेन की चर्चा से भी बुद्ध का अनात्मवाद स्पष्ट सिद्ध होता है। जब राजा मिलिन्द ने नागसेन से पूछा 'भन्ते! विज्ञान, प्रज्ञा और आत्मा ये एकार्थवाची शब्द है या अलग-अलग अर्थ के वाचक है? तब नागसेन ने कहा - 'महाराज! जानना यह विज्ञान है, समझना यह प्रज्ञा है और आत्मा यह कोई वस्तु ही नहीं है। इस पर से बुद्ध अनात्मवादी थे यह स्पष्ट सिद्ध होता है। इस क्षणभंगुर संसार में निर्वाण को छोड़कर सब वस्तुएँ विनाशशील और परिवर्तनशील हैं, यह बुद्ध को मान्य है। हमारा यह शरीर ही जब क्षणभंगुर है, तब आत्मा के समान स्थिर वस्तु उसमें कैसे रह सकेगी? उनके मतानुसार आत्मा शरीर से भिन्न नहीं है और अभिन्न भी नहीं है। संसार में सुख-दुःख, कर्म जन्म-मरण, बंध-मोक्ष आदि सब है, परंतु इन सब का स्थिर आधार आत्मा नहीं है। ये अवस्थाएँ नई अवस्था को उत्पन्न करके नष्ट होती है। जन्म-मृत्यु का रहस्य क्या है? ऐसा प्रश्न पूछने पर बुद्ध ने कहा कि शरीर ही आत्मा है, ऐसा मानना यह एक अंत है और आत्मा शरीर से भिन्न है, ऐसा मानना यह दूसरा अंत है। बुद्ध ऐसे एकांत को स्वीकार नहीं करते है।" जैन दर्शन का जीव तत्व और अन्य दर्शनों से जैन दर्शन का वैशिष्टयः नवतत्त्वों में जीवतत्व यह प्रथम तत्त्व है। क्योंकि यही तत्त्व सब तत्त्वों में मुख्य तत्त्व है। आगम साहित्य और आगमेतर साहित्य में अन्य तत्त्वों के अलावा जीवतत्त्व का ही ज्यादा विवेचन मिलता है। जीवतत्त्व को सूर्य के समान मान लिया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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