________________
३६८
जैन-दर्शन के नव तत्त्व
अवस्तु में वस्तु-बुद्धि, यह मिथ्याज्ञान है, अथवा निजात्मा के परिज्ञान की विमुखता मिथ्याज्ञान है। मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यय और केवल ये पाँच ज्ञान हैं। इनमें से ति, श्रुत और अवधि ये तीन ज्ञान, मिथ्याज्ञान भी होते हैं और सम्यग्ज्ञान भी होते हैं।१३१
जिस प्रकार दृष्टि अच्छी होने पर भी गलत चश्मा लगाने पर वस्तुएँ यथायोग्य रूप में दिखाई नहीं देती, उसी प्रकार मिथ्यात्व के उदय से ज्ञानदृष्टि विपरीत होती है। जब तक मिथ्यात्व का उदय है, तब तक जीव अज्ञानी ही रहता है। मिथ्यात्व के उदय का अभाव होने पर जीव ज्ञानी होता है। अतः सम्यग्दर्शन होने पर ही जीव को ज्ञानी कहा जाता है।
सम्यग्दर्शन का संबंध सम्यग्ज्ञान से होता है और मिथ्यात्व का संबंध मिथ्याज्ञान से होता है। कुदेव को देव, कुगुरु को गुरु, अधर्म को धर्म, कुशास्त्र को सत्शास्त्र मानना या देव को कुदेव, सुगुरु को गरु, धर्म को अधर्म, सत्शास्त्र को कुशास्त्र मानना ये सारे मिथ्यात्व के लक्षण हैं। ऐसी स्थिति मे मति, श्रुत और अवधि इन तीनों ज्ञान को “अज्ञान" कहा जाता है। अज्ञान का फल संसार है। मिथ्याज्ञान की प्रवृत्ति कुमार्ग की ओर रहती है। वह संसार और कर्मबंध का मूल कारण है और उसका परिपाक अनंत दुःख है। इसके विपरीत सम्यग्ज्ञान की प्रवृत्ति सन्मार्ग की ओर होती है। उसका परिपाक मोक्ष या अनंत सुख है। जिस ज्ञान से आत्मोत्थान और आत्मविकास होता है और सब विकारों का शमन होता है, वही सम्यग्ज्ञान है। संसार वृद्धि कराने वाला दुर्गति में डालने वाला ज्ञान मिथ्याज्ञान है। क्षयोपशम की न्यूनता से या बाह्य सामग्री की कमी से सम्यक्त्वी जीव को किसी विषय में संशय होगा, स्पष्टतः भान नहीं रहेगा या भ्रम भी होगा, फिर भी वह सत्यान्वेषी ही रहेगा। “जो सत्य है, वह मेरा है" (यत्सत्यं तन्मम) यही उसकी अन्तरात्मा की आवाज होगी। वह जीवित रहने के लिए खाता है, खाने के लिए जीवित नहीं रहता। वह अपने ज्ञान का उपयोग आध्यात्मिक विकास के लिए करता है। मिथ्यादृष्टि मानव अपने ज्ञान का उपयोग दोषों का पोषण करने के लिए करता है। सम्यग्दृष्टि व्यक्ति का ध्येय उचित होता है और मिथ्यादृष्टि व्यक्ति का ध्येय मूलतः ही अनुचित होता है।
वेदान्त और सांख्य दर्शन भी मोक्ष के लिए सम्यग्ज्ञान को ही आवश्यक. मानते हैं। उनके मतानुसार बंधन का एकमात्र कारण मिथ्याज्ञान है। जैन आचार्य विद्यानन्दी के मतानुसार सम्यग्ज्ञान से ही मोक्ष प्राप्त हो सकता है। सम्यग्दर्शन से रहित ज्ञान अज्ञान या मिथ्याज्ञान होता है और सम्यग्दर्शन सहित ज्ञान सम्यग्ज्ञान होता है।३२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org