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जैन-दर्शन के नव तत्त्व
जाता है। अज्ञान, मिथ्याज्ञान आदि जो कर्म के कारण बनाए जाते हैं, वे भी राग-द्वेष के संबंध से ही है। राग या द्वेष की उपस्थिति में ज्ञान विकारी बन जाता
शब्द भेद होने पर भी कबंध के कारणों के संबंध में अन्य किसी भी आस्तिक दर्शन के साथ जैन दर्शन का मतभेद नहीं है। न्याय वैशेषिक दर्शन में मिथ्या-ज्ञान को योग दर्शन में प्रकृति और पुरुष के तादात्म्य को और वेदान्त
आदि दर्शनों में अविद्या को तथा जैन दर्शन में मिथ्यात्व को कर्मबंध का कारण कहा गया है। परन्तु यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि हम किसी को भी कर्म-बंध का कारण माने, कर्मबंध तो राग-द्वेष के कारण ही होगा। राग-द्वेष का अभाव होते ही अज्ञान (मिथ्यात्व) समाप्त हो जाता है और फिर कर्मबंध संभव नहीं होता।
महाभारत के शांतिपर्व के 'कर्मणाबध्यते जंतु' इस कथन में भी 'कर्म' शब्द का अर्थ राग-द्वेष ही है। उन्हें मिथ्यात्व आदि किसी भी नाम से पुकारा जाये मूल में राग-द्वेष ही है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि राग-द्वेष जनित शारीरिक मानसिक प्रवृत्ति से कर्मबंध होता है। वैसे देखा जाए तो प्रत्येक क्रिया कर्मोपार्जन का कारण होती है, परन्तु जो क्रिया कषायजनित होती है, उससे होने वाला कर्मबंध विशेष बलवान होता है और जो क्रिया कषायजनित नहीं होती, उस क्रिया से होने वाला कर्मबंध निर्बल और अल्पायु होता है। उसे नष्ट करने में कम शक्ति और कम समय लगता है।
कर्म का सर्वसामान्य अर्थ 'क्रिया' ऐसा है और वेदों से लेकर ब्राह्मण काल तक वैदिक परंपरा में कर्म का यही अर्थ दिखाई देता है। वैदिक परंपरा में यज्ञ-याग आदि भौतिक क्रियाओं को 'कर्म' कहा है। इस कर्म का आचरण देवता को प्रसन्न करने के लिए किया जाता था और देवता ऐसा कर्म करने वाले की मनोकामना पूर्ण करते हैं ऐसा माना जाता था।
जैन परंपरा को कर्म का क्रियारूप अर्थ स्वीकार्य तो है लेकिन जैन परंपरा कर्म का केवल इतना ही अर्थ नहीं मानती। संसारी जीव की प्रत्येक क्रिया या प्रवृत्ति 'कर्म' है। जैन परिभाषा में इसे 'भावकर्म' कहते हैं। इस भावकर्म से जो अजीव पुद्गल द्रव्य आत्मा के संसर्ग में आकर उसे बंधन में डाल देता है उसे 'द्रव्य कर्म' कहते हैं। जीव की क्रिया 'भावकर्म' है और उसका फल 'द्रव्यकर्म' है। इन दोनों में कार्यकारण भाव है। भावकर्म कारण है और द्रव्यकर्म कार्य है। यह कार्यकारण भाव भी मुर्गी और उसके अण्डे के कार्यकारण भाव जैसा ही है। मुर्गी से अण्डा प्राप्त होता है, इसलिए मुर्गी कारण है और अण्डा कार्य है। किन्त किसी ने यह प्रश्न किया कि पहले मुर्गी या पहले अण्डा? तो इसका उत्तर देना कठिन
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