________________
३४८
जैन-दर्शन के नव तत्त्व
किए जाते हैं, उन परिणामों को भाव मोक्ष कहते हैं और सारे कमों का आत्मा से अलग होना इसे द्रव्य मोक्ष कहते हैं।
कर्म निर्मूल करने में समर्थ ऐसा शुद्धात्मा उपलब्धिरूप (निश्चयरत्नत्रयात्मक) जीव परिणाम 'भावमोक्ष' है और उस भावमोक्ष के निमित्त से जीव और कर्म के प्रदेश का पृथक होना 'द्रव्यमोक्ष' है।
सामान्यतः मोक्ष एक ही प्रकार का है, परन्तु द्रव्य, भाव आदि की दृष्टि से अनेक प्रकार का है। भावमोक्ष, केवलज्ञान, जीवन्मुक्ति, अर्हतपद ये सारे पर्यायवाची शब्द हैं।
शुद्ध रत्नत्रय की साधना से घाती कमों की निवृत्ति होती है, उसे भावमोक्ष कहते हैं। वस्तुतः कषाय भावों की निवृत्ति ही भावमोक्ष है।
जो जीव संवर से युक्त है और समस्त कमों की निर्जरा करते समय वेदनीय, नाम, गोत्र और आयुकर्म की भी निर्जरा करता है और वर्तमान पर्याय का परित्याग करता है, उसे 'द्रव्यमोक्ष' होता है।
कमों का सर्वथा क्षय 'द्रव्यमोक्ष' है और उन कमों के क्षय होने के कारणरूप जो आत्मा के परिणाम यानी संवरभाव (कमों को रोकना ), कमों की अबन्धकता, शैलेशीभाव अर्थात् आत्मा की निश्चल अवस्था एवं शुक्लध्यान ही 'भावमोक्ष' है। सिद्धत्व परिणति भी 'भावमोक्ष' हैं।
जीव के आस्त्रव का कारण मोह एवं तज्जन्य राग-द्वेष है। जब इन तीनों अशुद्ध भावों का विनाश होता है, तब ज्ञायक स्वरूप आत्मा के आस्त्रव भावों का अवश्य विनाश होता है। जब ज्ञानी के आस्त्रव भाव का अभाव होता है, तब कमों का नाश होता है। कमों का नाश होने पर निरावरण सर्वज्ञ-सर्वदर्शीपद प्रकट होता है और अखंडित अतीन्द्रिय अनंत सुख का अनुभव होता है। इसी का नाम 'जीवन्मुक्ति या भावमोक्ष' है।
जो आत्मा संवर से युक्त है और अपने सब पूर्वबद्ध कमों को नष्ट करता है, साथ ही जिस आत्मा के वेदनीय, नाम, गोत्र और आयुकर्म समाप्त हो गये वह आत्मा इन अघाती कमों के समाप्त होने से संसार को छोड़ देता है, इसलिए वह 'द्रव्यमोक्ष' है। कर्मक्षय का क्रम :
कमों को नष्ट किए बगैर कोई भी आत्मा सिद्ध नहीं हो सकता, इसलिए अनुक्रम से किन कमों को कैसे क्षय करना है इसका विवेचन जैन आगमों में इस प्रकार है -
__जीव राग-द्वेष और मिथ्या दर्शन पर विजय प्राप्त करके सम्यक् ज्ञान, दर्शन और चारित्र की आराधना करता है और आठ प्रकार के कर्म को क्षय
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org