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जैन-दर्शन के नव तत्त्व की घुड़दौड़ को कहीं रोक तो नहीं लेगा? हमारी क्रियाशीलता को कुंठित तो नहीं कर देगा? हमारे संस्कारों को जड़ और विचारों को स्थितिशील. तो नहीं कर देगा? ऊपर से शंका सत्य लगती है, मगर वस्तुतः यह सत्य नहीं हैं। ध्यान-साधना निष्क्रियता का या जड़ता का कारक नहीं है। अपितु समता, क्षमता अखण्ड शक्ति और शान्ति का विधायक तत्त्व है।
एक कालखण्ड ऐसा था जब मोक्षार्थी लोगों के लिए ध्यान निर्वाण-प्राप्ति का साधन था। वे मुक्ति मे लिए ध्यान में तल्लीन रहते थे। आध्यात्मिक दृष्टि से यह आज भी समीचीन माना जाता है। साथ ही वैज्ञानिक प्रगति और मानसिक बोध के विकास ने ध्यान-साधना की सामाजिक और व्यावहारिक उपयोगिता को
और भी स्पष्ट किया है। क्योंकि आज विदेशों में ध्यान भौतिक वैभव से सुसम्पन्न लोगों के आकर्षण का केन्द्र बनता जा रहा है।
ध्यान और चेतना :
__ध्यान का संबंध चेतना से है। मनोवैज्ञानिकों ने चेतना के मुख्य तीन भेद बताये हैं - जानना अर्थात् ज्ञान (Cognition), अनुभव अर्थात् अनुभूति (feeling), और प्रयत्न अर्थात् मानसिक सक्रियता (Conation)। ये तीनों बातें मन के विकास से परस्पर संबंधित हैं। ध्यान यह एक प्रकार की मानसिक क्रिया है। ध्यान मन को किसी एक वस्तु पर या संवेदना पर केन्द्रित करने में सक्रिया रहता है। परंतु भगवान् महावीर ने और अनेक आध्यात्मिक पुरुषों ने इससे आगे ध्यान को चित्तवृत्ति का निरोध करके आत्म-स्वरूप में रममाण होने की प्रक्रिया कहा
ध्यान के विषय में पश्चिम के लोगों का आकर्षण :
__ध्यान के प्रति पश्चिम के लोगों का जो आकर्षक बढ़ रहा है वह भोग के अतिरेक की प्रतिक्रिया की परिणति है। आत्मा के स्वभाव में रम जाने की सहज प्रवृत्तियाँ उनमें नहीं हैं। भौतिक ऐश्वर्य में डूबे हुए पाश्चात्यों के लिए ध्यान, भौतिक यंत्रणा ये मुक्ति प्राप्त करने का एक साधन है। इन्द्रिय-भोग के अतिरेक से उत्पन्न थकान के लिए विश्राम है। ध्यान मानसिक तनाव और दैनिक जीवन की उथल-पुथल से दूर रहने का एक मार्ग है। ध्यान के प्रति उनका आकर्षक भौतिक पदार्थों से होने वाली अतृप्ति तथा तकलीफ का परिणाम है। उनका उद्देश्य प्राचीन ऋषियों के समान मुक्ति या निर्वाण-प्राप्ति नहीं है। ध्यान को वे शारीरिक और मानसिक स्तर तक ही जान सकते हैं। उसके आगे आत्मिक स्तर तक वे नहीं पहचे हैं। वस्तुतः ध्यान-योग की साधना भोग की प्रतिक्रिया का फल नहीं है, उसका उद्देश्य महान् है। उसके द्वारा आत्मा के स्वभाव का परिचय प्राप्त करके उसका स्मरण करने की रुचि जाग्रत की जाती है। चित्तवृत्तियों का निरोध किया
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