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जैन-दर्शन के नव तत्त्व
अलग-अलग दिखाई देने पर भी सारे आत्मवादियों ने किसी न किसी नाम से कर्म को स्वीकार अवश्य किया है, इसमें कोई शंका नहीं हैं। कर्म-सिद्धान्त :
जैन दर्शन को समझने के लिये उसके "कर्म-सिद्धान्त" को समझना आवश्यक है। यह सुनिश्चित है कि सब दर्शन और तत्त्वज्ञानों का आधार आत्मा है और आत्मा की अलग-अलग स्थितियाँ, उसके स्वरूप के वैशिष्टय और उसकी परिवर्तनशील अवस्थाओं के रहस्यों का दिग्दर्शन "कर्म-सिद्धान्त" कराता है, इसलिए जैन दर्शन का सम्यक् आकलन करने के लिए "कर्म-सिद्धान्त” को समझना आवश्यक है।।
जैन दर्शन के संपूर्ण चिन्तन, मनन और विवेचन का आधार आत्मा है। आत्मा सर्वतंत्र स्वतंत्र शक्ति है। अपने भविष्य का निर्माता भी वही है और उसका फल भोगनेवाला भी वही है और अमूर्त तथा परमविशुद्ध है, परन्तु वह शरीर के साथ मूर्त बनकर अशुद्ध अवस्था में संसार में परिभ्रमण कर रहा है। स्वयं परमानन्दस्वरूप होकर भी सुख-दुःख के चक्र में धूम रहा है। अजर-अमर होकर भी जन्म-मृत्यु के प्रवाह में बह रहा है। सबसे बड़ा आश्चर्य तो यह है कि जो आत्मा परम शक्ति संपन्न है, वही दीन, हीन, दुःखी और दरिद्र बनकर संसार में यातना और कष्ट भोग रहा है। ऐसा क्यों?
जैन दर्शन इस कारण का विवेचन करते हुए कहता है कि आत्मा को संसार में भटकाने वाला कर्म है। कर्म ही जन्म-मरण का मूल है। 'कम्मं च जाई मरणस्रा मूलं' भगवान महावीर का यह कथन पूर्णतः सत्य और यथार्थ है। कमों के कारण ही यह जीव विश्व के रंगमंच पर विविध एवं विचित्र अभिनय करता रहा है। ईश्वरवादी दर्शनों ने इस विश्व-वैचित्र्य का और सुख-दुःख का कारण ईश्वर को माना है, किन्तु जैन दर्शन ने विश्व-वैचित्र्य का कारण मूलतः जीव और उसके “कर्म" को माना है। कर्म स्वतंत्र शक्ति नहीं है, वह स्वयं पुद्गल है जड़ है। परन्तु राग-द्वेष के कारण आत्मा जो कर्म करता है, वे इतने बलवान और शक्ति सम्पन्न बनते हैं कि कर्ता को भी अपने बंधन में बांध लेते हैं। मालिक को भी नौकर के समान नचाते हैं। यह कर्म की बड़ी विचित्र शक्ति है। जीवन और जगत के समस्त परिवर्तनों का मुख्य कारण क्या है? उनका वास्तविक स्वरूप क्या है? कर्म के विविध परिणाम कैसे होते हैं, यह सभी बड़े गम्भीर प्रश्न है।०७
जीव कर्म द्वारा अज्ञानी बनता है और कर्म से ही ज्ञानी बनता है। कर्म से ही सुलाया जाता है, और कर्म से ही जागृत किया जाता है। कर्म से ही सुखी होता है और कर्म से ही दुःखी होता है। जो कुछ होता है, वह सब कर्म से ही
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