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जैन-दर्शन के नव तत्त्व
है। वह स्वादिष्ट आहार मिलने पर भी अनासक्त रहता है तथा उच्च, मध्यम और निर्धन लोगों के घरों से सम भाव से थोड़ी-थोड़ी भिक्षा ग्रहण करता है।२३
भिक्षा के भेद
__भिक्षा का वर्गीकरण तीन प्रकार से किया गया है - दीनवृत्ति पौरुषजी और सर्वसंपत्करी। दरिद्र तथा संकट से ग्रस्त व्यक्ति दीनतापूर्वक याचना करके पेट भरता है उसकी भिक्षा को 'दीनवृत्ति भिक्षा' कहते हैं,। तो हृष्ट-पुष्ट होकर भी हर समय हाथ फैलाते हैं, कमाई की सामर्थ्य होने पर भी भीख माँगते हैं, उनकी भिक्षा को 'पौरुषजी भिक्षा' कहते हैं। जो त्यागी तथा संतोषी व्यक्ति अपने उदर-निर्वाह के लिए गृहस्थों के घरों से थोड़ी-थोड़ी निर्दोष भिक्षा ग्रहण करता है, उस व्यक्ति की भिक्षा ‘सर्वसंपत्करी भिक्षा' है। इस भिक्षा की अवस्था में देने वाला
और लेने वाला दोनों ही सद्गति के अधिकारी होते हैं।" यही भिक्षा वास्तविक भिक्षाचर्या-तप है।
श्रमण की मधुकरवृत्ति : श्रमण को मधूकर की उपमा दी गई है। जिस प्रकार भ्रमर फूलों पर घूमते समय थोड़ा-थोड़ा मधु पीकर सन्तुष्ट हो जाता है, और फूलों को भी किसी प्रकार से हानि नहीं पहुँचने देता, उसी प्रकार मुनि भोजन के लालच से रहित होकर, समभाव से गृहस्थों के घर जाकर सहज भाव से बनाये गये भोजन (आहार) में से थोड़ा-थोड़ा ग्रहण करते हैं। इससे गृहस्थ को कोई तकलीफ नहीं होती।५
भगवतीसूत्र और औपपातिक सूत्र में इस भिक्षाचरी के तीस भेदों का प्रतिपादन किया गया है। स्थानांगसूत्र में इन तीस भेदों के अतिरिक्त दो अन्य भेदों का भी उल्लेख है। संक्षप में - इस तप से साधक अपनी इच्छाओं का निग्रह करता है, जो मिल जाये उसी में संतुष्ट रहता है। साथ ही मन के अनुकूल आहार न मिलने पर भी जो नीरस आहार मिल जाये उसी से सन्तुष्ट होकर आत्म-साधना के मार्ग पर निर्द्वन्द्व भाव से अग्रसर होता है। (४) रस-परित्याग :
रस-परित्याग एक प्रकार का आस्वाद-व्रत है। इसमें स्वाद पर विजय प्राप्त करने की साधना की जाती है। घी आदि से निर्मित अति गरिष्ठ आहार शरीर में शीघ्र ही मद (विकार) उत्पन्न करता है, जिससे मन चंचल होता है, इन्द्रियाँ उत्तेजित होती हैं तथा संयम के बंधन टूटते हैं।
ब्रह्मचर्य की साधना के लिए 'रसत्याग' आस्वाद-व्रत अतीव आवश्यक है। रसयुक्त भोजन तो साधक के लिए विष के समान माना गया है। दूध, दही, घी, तेल, मधु, मक्खन आदि विकारी रसों का त्याग करना - 'रसपरित्याग' कहलाता है। इस तप से इन्द्रियों तथा निद्रा पर विजय प्राप्त होती है। स्वाध्याय आदि की
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