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जैन दर्शन के नव तत्त्व
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वस्तु का प्रत्याख्यान न करने से और (२) अजीव वस्तुओं का प्रत्याख्यान न करने से 1
१०- मिथ्यादर्शनप्रत्यया क्रिया : कुगुरु, कुदेव और कुधर्म पर श्रद्धा रखने से यह क्रिया लगती है। इसके दो भेद हैं- (१) न्यूनाधिक मिथ्यादर्शनप्रत्यया तथा (२) विपरीत मिथ्यादर्शनप्रत्यया ।
११- दृष्टि-क्रिया : किसी भी वस्तु को देखने से लगने वाली क्रिया । इसके भी दो भेद हैं- (१) जीवदृष्टि और ( २ ) अजीवदृष्टि ।
१२- स्पृष्टि-क्रिया : राग-द्वेष के अधीन होकर किसी भी वस्तु का स्पर्श करने से लगने वाली क्रिया । इसके दो भेद हैं- ( १ ) जीवस्पृष्टि और (२) अजीवस्पृष्टि । १३- पाडुच्चिया ( प्रातीत्यिकी) क्रिया : जीव और अजीव इन बाहूय वस्तुओं के निमित्त से जो राग-द्वेष उत्पन्न होता है, उससे लगने वाली क्रिया । इसके भी दो भेद हैं- ( १ ) जीव - प्रातीत्यिकी और ( २ ) अजीव प्रातीत्यिकी ।
१४- सामन्तोपनिपातिकी क्रिया : आस-पास के लोग आकर गाय, घोड़े आदि जीवों की या रथ, घर, वस्त्र, अलंकार आदि की प्रशंसा करते हैं । उस प्रशंसा को सुनकर खुश होने से और घी, तेल आदि का पात्र खुला रखने पर उसमें जीव-जन्तुओं के गिरने से लगने वाली क्रिया सामन्तोपनिपातिकी क्रिया है । इसके दो भेद हैं- ( १ ) जीवसामन्तोपनिपातिकी तथा (२) अजीवसामन्तोपनिपातिकी । १५ - स्वहस्तिकी ( साहत्थिया) क्रिया : परस्पर झगड़े कराने से लगने वाली क्रिया । भेड़, मुर्गी, हाथी, मनुष्य आदि में परस्पर लड़ाई कराने से और अजीव वस्तु, वस्त्र, पात्र आदि का ताडन करने से लगने वाली क्रिया । इसके दो भेद हैं - (१) जीव - स्वहस्तिकी तथा ( २ ) अजीव - स्वहस्तिकी ।
१६- नैशस्त्रिकी (नेसत्थिया) क्रिया : किसी भी वस्तु को अव्यवस्थित रखना अर्थात् जीव-जन्तु देखे बिना वस्तु रख देने से यह क्रिया लगती है । इसके दो भेद हैं ( १ ) जीवनेसत्थिया तथा ( २ ) अजीवनेसत्थिया ।
१७- आज्ञापनिका ( आणवणिया ) क्रिया : मालिक की आज्ञा के बिना किसी भी वस्तु को ग्रहण करने अथवा ग्रहण करके वस्तु माँगने से लगने वाली क्रिया । अर्थात् सजीव या अजीव वस्तु के माँगने से लगने वाली क्रिया । इसके दो भेद हैं
(१) जीव - आणवणिया, (२) अजीव - आणवणिया ।
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१८- वैदारणिका (वेयारणिया) क्रिया : किसी भी वस्तु का विदारण (चीर-फाड़) करने से लगने वाली क्रिया, चाहे वह वस्तु सजीव हो या अजीव । इसके भी दो भेद हैं - ( १ ) जीव - विदारणिया तथा (२) अजीव - विदारणिया ।
१६- अनाभोगप्रत्यया क्रिया : सावधानी के बिना कार्य करने से लगनेवाली क्रिया, अर्थात् अयतनापूर्वक वस्तु या पात्र लेने या रखने से लगने वाली क्रिया । इसके दो भेद हैं - (१) वस्त्र और पात्र लेने और रखने में असावधानी, (२) वस्त्र - पात्र के प्रतिलेखन में असावधानी ।
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