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जैन दर्शन के नव तत्त्व
है अणु और स्कंध ये दोनों पुद्गल की विशिष्ट अवस्थाओं के नाम 1 द्वयणुक आदि स्कन्ध का विश्लेषण करने पर अंत में पुद्गल अणु-अवस्था में पहुँचता है। अणु के साथ मिलने पर पुद्गल स्कन्ध अवस्था में पहुँचते हैं तथा गुण आदि का बन्ध होता है । २
जैन- दार्शनिकों ने प्रकृति और ऊर्जा को पुद्गल का पर्याय माना है I विज्ञान भी यही मानता है । शब्द, बन्ध, सूक्ष्म, स्थूल, संस्थान, भेद, छाया, तम ( अंधकार ) उद्योत और आतप सहित जो हैं, वे सभी पुद्गल के पर्याय हैं।
अंधकार और प्रकाश के लक्षण को अभावात्मक न मानते हुए दृष्टिप्रतिबंधकारक और विरोधी तत्त्व माना गया है।
अंधकार पुद्गल का एक पर्याय है। प्रकाश पुद्गल से उसका अलग अस्तित्त्व है। इस विशाल विश्व में जितने भी पुद्गल हैं वे सभी स्निग्ध और रूक्ष गुणों से युक्त ऐसे परमाणुओं के बंधन से निर्मित होते हैं । सब पुद्गलों का रचनातत्त्व एक ही प्रकार का होता है । अर्थात् रचना-तत्त्व की दृष्टि से समस्त पुद्गल एक ही प्रकार के हैं
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छाया भी पुद्गल का पर्याय है। प्रकाश के निमित्त से छाया तैयार होती है । प्रकाश को आतप और उद्योत के रूप में विभक्त किया गया है। सूर्य का चमचम करने वाला प्रकाश आतप है और चन्द्र, काजवा (जिसकी पूँछ में से प्रकाश निकलता है) आदि का शीतल प्रकाश उद्योत है । शब्द भी पौद्गलिक हैं । जिसमें पूरण तथा गलन दोनों हैं, वह पुद्गल हैं । इसलिए एक स्कन्ध का दूसरे स्निग्ध और रूक्ष गुणयुक्त स्कन्ध में मिल जाना पूरण है। एक स्कन्ध से कुछ स्निग्ध और रूक्ष गुणयुक्त परमाणुओं का विभक्त हो जाना गलन है । "
परमाणुओं के विभाग नहीं होते । परन्तु उनमें सूक्ष्म परिणमन और अवगाहन की शक्ति के कारण असंभव बातें संभव हो जाती हैं।
पुद्गल परमाणु बहुत ही सूक्ष्म हैं। उसकी अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग जितनी है। वह तलवार की नोंक पर आ सकता है। परंतु तलवार की तीखी धार उसे छेद नहीं सकती। और अगर छिद जाय तो वह परमाणु ही नहीं हैं।६
परमाणु का विभाजन नहीं होता । परमाणु परस्परऔर अलग हो सकते हैं । परंतु उनका अंतिम अंश अखण्ड है।
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- संयुक्त हो सकते हैं
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