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जैन-दर्शन के नव तन्त्र
किसी शूद्र के घर में दो बालकों ने जन्म लिया। एक का पालन-पोषण ब्राह्मण के घर में हुआ और दूसरे का पालन-पोषण शूद्र के घर में ही हुआ। एक कहता है - "मैं ब्राह्मण हूँ। मैं मदिरा का स्पर्श नहीं कर सकता।" इसलिए वह मदिरा का त्याग करता है। दूसरा कहता है - "मैं तो शूद्र हूँ इसलिए मुझे मदिरा से ही स्नान करना चाहिए।" इस प्रकार वह मदिरा को पवित्र मानता है।
वस्तुतः दोनों ही जन्म से शूद्र हैं परन्तु जातिभेद के अनुसार वे इस प्रकार की प्रवृत्ति रखते हैं। उसी प्रकार पुण्य और पाप दोनों ही एक जैसे हैं। फिर भी मोह-दृष्टि के भ्रम से अज्ञानी जीव उनमें भेद देखकर पुण्य को पवित्र और पाप को अपवित्र समझते हैं।०२
सर्वज्ञ देवों ने शुभ और अशुभ दोनों कों को बन्ध का कारण कहा है और ज्ञान को मोक्ष का कारण कहा है।
जो सम्यक्-दृष्टि जीव है उसके लिए पुण्य और पाप दोनों हेय हैं।
पाप को पाप तो सभी मानते हैं, परंतु पुण्य को पाप मानने वाला ज्ञानी विरला ही होता है।६
जो पुण्य की इच्छा करता है, वह संसार की इच्छा करता है, क्योंकि पुण्य सुगति का कारण है किन्तु जो पुण्य का भी क्षय करता है, वह मोक्ष प्राप्त करता है।
पुण्य-पाप की कसौटी साधारण लोग कहते हैं कि दान, पूजन, सेवा आदि क्रियाएँ करने से शुभ कर्म (पुण्य) का बन्ध होता है और किसी को कष्ट देने, इच्छा के विरुद्ध काम करने आदि से अशुभ कर्म (पाप) का बन्ध होता है। परंतु पुण्य-पाप का निर्णय करने की यह मुख्य कसौटी नहीं है। कारण यह कि किसी को कष्ट देने से और दूसरे की इच्छा के विरुद्ध काम करने से भी पुण्य का उपार्जन हो सकता है।
इसी प्रकार दान, पूजन, सेवा आदि करने वाला भी कभी-कभी पुण्य का उपार्जन नहीं करता, अपितु पाप भी करता है। जैसे - कोई परोपकारी, चिकित्सक जब किसी व्यक्ति की शल्यक्रिया करता है, तब उस रोगी को कष्ट अवश्य होता है। हितैषी माता-पिता अज्ञानी बालक को उसकी इच्छा के विरुद्ध सिखाने का प्रयत्न करते हैं, उस समय उस बालक को दुःख होता है। परंतु इन दोनों उदाहरणों में - चिकित्सक अनुचित काम करने वाला नहीं माना जाता और हित चाहने वाले माता-पिता भी दोषी नहीं समझे जाते।
इसके विपरीत जब कोई भोले लोगों को फँसाने की इच्छा से या किसी तुच्छ आशय से दान-पूजन आदि क्रियाएँ करता है, तब वह पुण्य के बजाय पाप होता है। इसलिए पुण्य-बन्ध या पाप-बन्ध की असली कसौटी केवल ऊपर निर्दिष्ट क्रियाएँ नहीं हैं। वरन् उसकी असली कसौटी कर्ता का आशय ही है।
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