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जैन-दर्शन के नव तत्त्व प्रकार से बताये गये हैं और पुद्गल द्रव्य के अणु और स्कन्ध दो भेद किये गये है। (१) समस्त पुद्गल स्कंध परमाणु से निर्मित हैं और परमाणु पुद्गल का
सूक्ष्मतम अंश है। परमाणु नित्य, अविनाशी और सूक्ष्म है। परमाणु में रस, गंध, वर्ण और दो स्पर्श (स्निग्ध अथवा रूक्ष, शीत अथवा उष्ण) हैं। परमाणु का अनुमान उससे निर्मित स्कंध से किया जा सकता है।
जैन मत के अनुसार कुछ पुद्गल-स्कंध संख्यात प्रदेश के, कुछ असंख्यात प्रदेश के और कुछ अनंत प्रदेश के होते हैं। सब से बड़ा स्कन्ध अनन्त प्रदेशी होता है और सब से छोटा स्कन्ध द्विप्रदेशी होता है। अनन्त प्रदेशी स्कन्ध एक प्रदेश में भी समावेश कर सकता है।
परमाणु इकट्ठे होने पर स्कन्ध बनता है। स्कन्ध पृथक् होने पर परमाणु बनते हैं। यह द्रव्य की अपेक्षा से है। क्षेत्र की अपेक्षा से स्कन्ध अदि लोक (त्रिलोक) के एक देश से संपूर्ण लोक तक असंख्य विकल्पात्मक हैं। इसके बाद स्कन्ध और परमाणु के काल की अपेक्षा से चार भेद बताए गए है।
पुद्गल-स्कंध की स्थिति जघन्य (कम से कम) एक समय (absolute unit of time) और उत्कृष्ट (ज्यादा से ज्यादा) असंख्यात (countless) काल तक है। पुद्गल के दो भेद : अणु और स्कन्ध
___ 'पुद्गल' अणु (Atomic) और स्कन्ध (Compound) रूप से दो प्रकार के हैं। अतीव छोटा होने से अणु का उपयोग नहीं किया जाता। जो पुद्गल द्रव्य कारणरूप है, कार्यरूप नहीं है, वह अन्त्य द्रव्य है, वही परमाणु है। उसका दूसरा विभाग नहीं हो सकता है। उसका प्रारम्भ, मध्य और अंत वही होता है। ऐसे अविभागी पुद्गल के परमाणु को अणु कहते हैं।
दो अणु मिलकर स्कन्ध बनता है। पुद्गल द्रव्य का दूसरा प्रकार स्कन्ध है। दो-तीन, संख्यात-असंख्यात और अनन्त परमाणुओं के पिण्ड (समूह) को स्कन्ध कहते हैं। द्वयणुक आदि स्कन्ध का विश्लेषण (analysis) करने पर अणु अदि उत्पन्न होते हैं। अणु आदि के समूह से द्वयणुक आदि होते हैं। कभी-कभी स्कन्ध की उत्पत्ति, विश्लेषण और संघात भी दोनों के संयोग से होते हैं।"
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