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जैन-दर्शन के नव तत्त्व गन्ध के पुद्गल तथा हवा के पुद्गल दृष्टिगोचर नहीं होते। परन्तु आज के विज्ञान-युग में विज्ञान ने सिद्ध किया है कि वे पुद्गल दृष्टिगोचर न होते हुए भी टेलीविजन, रेडियो, ग्रामोफोन, टेलिप्रिंटर, वायरलेस, टेलीफोन तथा टेपरिकॉर्डर के रिकार्ड में संगृहीत किए जाते हैं और हमें सुनाए जाते हैं। वे रूपी हैं इसलिए मशीन की सहायता से पकड़े जाते हैं। यह बात जैनदर्शन ने अनेक वर्ष पूर्व ही सिद्ध करके बता दी थी।
जैनदर्शन के तत्त्व, विज्ञान के तत्त्वों के साथ सिद्ध किए जाते हैं। जैन-तत्त्व-विज्ञान सिद्ध तत्त्व है।
जैन-दार्शनिकों ने जो पुद्गल का सूक्ष्म विवेचन और विश्लेषण किया है, वह अपूर्व है।
अनेक पाश्चात्य विचारकों का मत है कि भारत में परमाणुवाद यूनान से आया है। परन्तु यह कथन सत्य है। यूनान में परमाणुवाद का जन्मदाता डेमोक्रिटस (ईसवी पूर्व ४६०-४७०) था परन्तु उसके परमाणुवाद से जैन-दर्शन का परमाणुवाद बहुत ही अलग (पृथक) है। मौलिकता की दृष्टि से वह सर्वथा भिन्न है। जैन दृष्टि से परमाणु चेतना का उलटा है। मतानुसार आत्मा सूक्ष्म परमाणु का विकार है।
अनेक भारतीय विद्वान कणाद ऋषि को परमाण का जनक मानते हैं परंतु तटस्थ दृष्टि से चिन्तन करने पर सहजता से ज्ञात हो जाता है कि वैशेषिक-दर्शन का परमाणुवाद जैन - परमाणुवाद के पहले का नहीं है। जैन-दर्शननिकों ने परमाणु के अलग-अलग हिस्सों पर जिस प्रकार वैज्ञानिक दृष्टि से प्रकाश डाला है वैसा प्रकाश वैज्ञानिकों ने नहीं डाला। दर्शनशास्त्र के इतिहास में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि परमाणुवाद के सिध्दान्तों को जन्म देने का श्रेय जैन-दर्शन को ही मिलना चाहिए। उपनिषद् साहित्य में अणु शब्द का प्रयोग हुआ है। परंतु परमाणुवाद का कहीं नाम नहीं है। वैशेषिकों का परमाणुवाद लगता है उतना प्राचीन नहीं है ऐसा कुछ लोगों का मत है। परमाणुवाद का जनक कोई भी क्यों न हो जैन दार्शनिकों ने वैज्ञानिक दृष्टि से परमाणुवाद का अधिक सूक्ष्म संशोधन किया है, इस संबंध में दोमते नहीं हैं ।६३ परमाणु की सूक्ष्मता
विज्ञान का परमाणु कितना सूक्ष्म है- इसका अनुमान इस बात से लगया जा सकता है कि पचास शंख परमाणुओं का वजन सिर्फ ढाई तोले के आसपास होता है और उनका व्यास एक इंच के दस कारोड़वें हिस्से के बराबर होता है। एक लाख परमाणु एक-दूसरे के ऊपर लगाकर रखे जायें तो सिगरेट के पैकेट में निकलने वाले पतले कागज अथाव पतंग के कागज जितनी मोटाई तैयार होगी। धूल के एक छोटे से कण में दस पद्म से भी ज्यादा धूलिकण होते हैं।
सोडा वाटर को किसी काँच के प्याले में खाली करने पर जो छोटी - छोटी बूंदें तैयार होती हैं उनमें से एक बूंद के परमाणु गिनने के लिए विश्व के For Private & Personal Use Only
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