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जैन-दर्शन के नव तत्त्व
हैं कि यह आकाश का स्वभाव नहीं है। क्योंकि कोई भी द्रव्य अपने स्वभाव का त्याग नहीं करता। शक्ति की दृष्टि से उसमें भी आकाश का व्यवहार होता है। क्रिया का निमित्त होते हुए भी रूढ़ि के विशेष सामर्थ्य के कारण अलोकाकाश को 'आकाश' संज्ञा प्राप्त होती है। जिस प्रकार बैठी हुई गाय में चलन क्रिया का अभाव होते हुए भी चलन-शक्ति के कारण 'गो' शब्द की प्रवृति दिखाई हेती है। लोक असंख्यात प्रदेश का है इसलिए वह अनन्त और अनंतानन्त प्रदेश के स्कंध का आधार है, यह बात मान लेने में विरोध है। परन्तु यह दोष नहीं है। क्योंकि सूक्ष्म परिणमन के कारण और अवगाहन शक्ति के कारण आकाश अनन्त या अनंतानंत प्रदेश के पुद्गल-स्कंध का आधार बनता है, सूक्ष्म रूप से परिणत हुए परमाणु आकाश के प्रदेश में वास करते हैं। उनकी अवगाहन-शक्ति बाधारहित होती है। इसलिए आकाश के एक प्रदेश में अनंतानंत पुद्गलों के वास्तव्य का विरोध नहीं हैं फिर भी छोटे आधार में बड़ा आधार नहीं रह सकता, ऐसा कोई एकपक्षीय नियम नहीं है। पुद्गलों में अनेक प्रकार के सघन संघात होने से छोटी जगह में अनेक पुद्गलों का वास्तव्य हो सकता है। जैसे - किसी छोटी सी चम्पा की कली में अनेक गंधावयव सूक्ष्म रूप से वास करते हैं। परंतु वे जब फैलने लगते हैं, तब समस्त दिशाओं में फैल जाते हैं।२ .
आकाश का एक प्रदेश भी शेष पाँच द्रव्यों के प्रदेश को और अतिसूक्ष्मता से परिणमन को प्राप्त अनेक परमाणुओं के स्कंधों को अवकाश देने में समर्थ होता है।
जितना आकाश अविभागी पुद्गल अणुओं से व्याप्त होता है, उसे सब परमाणुओं को स्थान देने में समर्थ 'प्रदेश' जान लेना चाहिए । काल (TIME)
काल अरूपी और अजीव द्रव्य है। काल अनन्त है। दिन, रात, मास, ऋतु, वर्ष आदि उसके भेद हैं। ये समस्त भेद काल के कारण ही होते हैं। काल न होता तो ये भेद भी नहीं होते। जीव और पुद्गल में समय-समय पर जीर्णता उत्पन्न होती है, वह काल द्रव्य की सहायता के बिना नहीं हो सकती। उत्पाद, व्यय ध्रौव्यरूप स्वभाव से युक्त जीव और पुद्गल का जो परिणमन दिखाई देता है, उससे काल द्रव्य सिद्ध होता है।५।।
____ काल द्रव्य पाँच वर्ण, पाँच रस, दो गन्ध और आठ स्पर्शों से रहित है। हानि-वृद्धिरूप है, अगुरुलघु गुणों से युक्त है, अमूर्त है और वर्तना-लक्षणसहित
___ जीवादि द्रव्य के परिवर्तन का कारण काल है। धर्मादि चार द्रव्यों में गुण और पर्याय स्वभावतः ही होते हैं अर्थात् जीवादि द्रव्यों में समय-समय पर जो वर्तनारूप परिणमन होता है, उसका निमित्त कारण कालद्रव्य है। धर्म, अधर्म,
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