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जैन-दर्शन के नव तत्त्व
जीवों की संख्या वेदान्त-दर्शन में जीवों की संख्या का विचार करते हुए कहा गया है कि जीव चैतन्य तत्त्व है और वह सर्वत्र एक ही है। परन्तु जैनदर्शन ऐसा नहीं मानता।
जैन-आगम-ग्रंथ भगवतीसूत्र में गौतम स्वामी ने भगवान् महावीर स्वामी से पूछा- “जीवद्रव्य संख्यात है, असंख्यात है या अनन्त है?"
__ भगवान महावीर ने उत्तर दिया-“हे गौतम! जीव संख्यात नहीं, असंख्यात नहीं बल्कि अनन्त है।"४३
इसी प्रकार भगवान महावीर से एक बार पूछा गया-"इस विश्व में अनन्त क्या है?" भगवान् ने कहा-“जीव और अजीव ।”
पुनः एक बार गौतम ने भगवान से पूछा- "हे भगवान! जीव कम-ज्यादा होते हैं क्या?" भगवान ने कहा-“हे गौतम! जीव बढ़ते नहीं हैं और कम भी नहीं होते हैं, अवस्थित रहते हैं।"४५
___ एक बार गौतम ने पूछा-"कितने काल तक जीव कम ज्यादा हुए बिना अवस्थित रहते हैं?" प्रभु ने कहा- "हे गौतम! जीव सब कालों में अवस्थित हैं और रहते हैं।"
जीव अनन्त होते हुए भी द्रव्यत्व की दृष्टि से एक है इसीलिए ठाणांगसूत्र में कहा गया है कि "आत्मा एक है।६।
जीव की शाश्वतता ठाणांगसूत्र में कहा गया है कि जीव भूतकाल में था, वर्तमान काल में है और भविष्यत् काल में रहेगा। वह ध्रुव, नित्य, शाश्वत, अव्यय और स्थित है। वह तीनों ही कालों में विद्यमान है।
जीव कभी अजीव नहीं होता, न हुआ है और न ही होगा।
भगवद्गीता में कहा गया है - “यह (आत्मा) न कभी जन्म लेता है और न मरता है। यह (एक बार) होकर पुनः नहीं होगा, ऐसा भी नहीं है। यह जन्मरहित, नित्य, क्षयरहित और अनादि है। शरीर का नाश होने पर भी इसका नाश नहीं होता। यह जीवात्मा अक्षय है, नित्य है, शाश्वत है और पुरातन है।"
"शरीर का नाश होने पर भी आत्मा का नाश नहीं होता।"..
"मै, तू और ये राजा पूर्व में नहीं थे, ऐसा नहीं है। उसी प्रकार इसके बाद हम सभी नहीं होंगे ऐसा भी नहीं है।" श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा “आत्मा को शस्त्र छेदते नहीं हैं, अग्नि जलाती नहीं है, पानी भिगोता नहीं है और वायु सुखाती नहीं है। आत्मा का छेदन होना, दाह होना या शुष्क हो जाना भी अशक्य है। आत्मा नित्य, सर्वव्यापी स्थिर, अचल और सनातन है।५१
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