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जैन दर्शन के नव तत्त्व
अगर जानना और देखना शरीर का कार्य होता, तो मृत्यु के उपरान्त भी शरीर का अस्तित्त्व होता और वह कार्य करता । परन्तु ऐसा नहीं होता। इससे सिद्ध होता है कि वह कार्य शरीर का नहीं, आत्मा का था। सारांशतः चैतन्यपूर्ण जीवन-व्यवहार आत्मा के अस्तित्त्व का सब से श्रेष्ठ प्रमाण है, इसे कोई भी नकार नहीं सकता।
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चींटी आदि में चैतन्यमय जीवन व्यवहार है अर्थात् उनमें आत्मा है । कागज, पेन्सिल, छुरी, चाकू आदि में चैतन्यमय व्यवहार नहीं है, अर्थात् उनमें आत्मा का अस्तित्त्व नहीं है। गाय, भैंस, हाथी, घोड़ा, मछली, सर्प आदि में चैतन्यमय जीवन-व्यवहार है, अर्थात् उनमें आत्मा है।
जिस प्रकार धुएँ से अग्नि का अस्तित्त्व सिद्ध होता है, उसी प्रकार चैतन्य से आत्मा का अस्तित्त्व सिद्ध होता है। इसीलिए शास्त्रकारों ने जीव का लक्षण चैतन्य बताया है । इसका अर्थ यह है कि जहाँ चैतन्य है वहाँ जीव और आत्मा का अस्तित्त्व है। राजप्रश्नीयसूत्र में परदेशी राजा की आत्मा के अस्तित्त्व के संबंध में अनेक प्रश्नोत्तर दिए गये हैं ।
केशीकुमार श्रमण राजा परदेशी को दादा, दादी, चोर, आँवला आदि के अनेक उदाहरण देकर आत्मा का अस्तित्त्व सिद्ध करके दिखाते हैं। राजा परदेशी की शंकाएँ इन उदाहरणों से दूर होती हैं और आत्मा के अस्तित्त्व में उसकी दृढ़ श्रद्धा होती है।
भारतीय तत्त्वज्ञान की अमर घोषणा है कि आत्मा का अस्तित्त्व है और आत्मा का अस्तित्त्व मानने में ही सब का कल्याण है। **
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आत्मा के विषय में विभिन्न वैज्ञानिकों के विचार :आत्मा के अस्तित्त्व को वैज्ञानिकों ने भी स्वीकार किया है। आत्मा के
विषय में उनके विचार इस प्रकार हैं।
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"मैं यह मानता हूँ कि सम्पूर्ण
प्राध्यापक अल्बर्ट आइन्स्टाइन ने कहा है विश्व में चेतना काम कर रही है। सर ए०एस० एडिंग्टन का कथन है कोई अज्ञात शक्ति काम कर रही है। वह क्या है यह हम जान नहीं सकते। मैं चेतना को मुख्य मानता हूँ और भौतिक पदार्थों को गौण मानता हूँ । प्राचीन नास्तिकवाद नष्ट हुआ। धर्म आत्मा और मन का विषय है और उसे डिगाया नहीं जा सकता"*६ हर्बर्ट स्पेन्सर का मत है कि गुरु, धर्मगुरु, अनेक दार्शनिक चाहे वे
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