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जैन-दर्शन के नव तत्त्व
द्रव्य का स्वरूप
श्रीउमास्वती जी ने द्रव्य का स्वरूप तत्त्वार्थ सूत्र में इस प्रकार बताया है- 'द्रव्य गुण - पर्याययुक्त है।'
__ जिसमें गुण और पर्याय होते है उसे द्रव्य कहते हैं। जैन-दर्शन के अनुसार लोकव्यवस्था करने वाले छह द्रव्य हैं। वे सारे गुण - पर्याय (अवस्थान्तर) रूप से उत्पाद-व्यय करते हैं। द्रव्य सत् है। उसकी संख्या में कभी परिवर्तन नहीं होता और असतू का उत्पाद भी संभव नहीं है। सत् द्रव्य के पर्याय का परिवर्तन
होता है।
प्रत्येक द्रव्य परिणामी स्वभाव के कारण भिन्न-भिन्न रूपों में परिणत (परिवर्तित) होता रहता है। द्रव्य में परिणाम करने की जो शक्ति है वही द्रव्य के गुण हैं और गुणजन्य परिणाम (परिवर्तन) को पर्याय कहते हैं। गुण कारण है और पर्याय कार्य है। द्रव्य गुण - पर्यायात्मक है।" द्रव्य का क्षेत्र-प्रमाण
द्रव्य के लक्षण और स्वरूप के विवेचन के उपरान्त द्रव्य का क्षेत्र - प्रमाण विचारणीय है। धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय लोक (विश्व)-प्रमाण है
और आकाशास्तिकाय लोक-अलोक प्रमाण है। अर्थात आकाशास्तिकाय लोक में भी है और अलोक में भी है क्योंकि आकाश सर्वव्यापी है। कालद्रव्य मनुष्य - लोक में ही है, उसके बाहर । एक बार गौतम ने भगवान महावीर से पूछा- “भन्ते ! धमीस्तिकाय कितना बड़ा है?"
भगवान् महावीर ने उत्तर दिया - "हे गौतम! धर्मास्तिकाय लोक है, लोकमात्र है, लोकप्रमाण है, लोक-स्पृष्ट है। अर्थात् लोक का स्पर्श कर रहा है। गौतम! अधर्मास्तिकाय, जीवास्तिकाय एवं पुद्गलास्तिकाय के बारे में भी यही समझना है।"
धर्म और अधर्म लोक-प्रमाण है । आकाश लोक और अलोक में व्याप्त है। काल केवल समय-क्षेत्र (मनुष्य-क्षेत्र में ही है । धर्म, अधर्म तथा आकाश ये तीनों द्रव्य अनादि, अपर्यवसित, अनन्त और सर्वकाल नित्य हैं। प्रवाह की अपेक्षा से समय भी अनादि व अनन्त है। अर्थात् प्रतिनियत व्यक्तिरूप एक-एक क्षण की अपेक्षा से सादि व सान्त है।
स्कन्ध आदि प्रवाह की अपेक्षा से अनादि तथा अनन्त हैं और स्थिति (प्रतिनियत- निश्चित - एक क्षेत्र में स्थिर रहना) की अपेक्षा से सादि तथा सान्त हैं। रूपी - अजीव - पुद्गल द्रव्य की स्थिति जघन्य (कम से कम) एक समय (अति सूक्ष्म काल) और उत्कृष्ट (ज्यादा से ज्यादा काल) उन संख्यात काल की बतायी गयी है। रूपी अजीव का अन्तर (अपने पूर्वावगाहित स्थानको छोड़कर पुनः वापस आने तक का काल) जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अनन्त काल है।
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