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जैन-दर्शन के नव तत्त्व प्राचीन हों या अर्वाचीन, पश्चिम के हों या पूर्व के, सब का अनुभव यही है कि अज्ञात या अज्ञेय तत्त्व स्वयं की आत्मा ही है।६७
जे०बी०हेल्डन का मत है कि विश्व का मौलिक तत्त्व 'सत्य' जड़ [Matter] बल [Force] या भौतिक पदार्थ [Physical thing] न होकर मन या चेतना ही है। आर्थर एच- कॉम्प्टन ने लिखा है - "एक ही निर्णय यह बताता है कि मृत्यु के बाद आत्मा की संभवनीयता है। ज्योति लकड़ी से भिन्न है। लकड़ी तो थोड़े समय तक ज्योति को प्रकट करने के लिए इंधन का काम करती है।
"दि ग्रेट डिवाइन" नामक पुस्तक में विश्व के प्रमुख वैज्ञानिकों ने अपने मत प्रकट किए हैं। उन मतों का सारांश यह है - "यह विश्व कोई आत्मारंहित यन्त्र नहीं है या यह केवल अचानक ही बना है ऐसा भी नहीं है। इसके पीछे कोई बुद्धि, चेतनाशक्ति निश्चित रूप से है, भले ही उसे आप कोई भी नाम दें।..
रेने डेकार्ट ने एक सामान्य उदाहरण देते हुए कहा है - "मैं चिन्तन करता हूँ।" इसका अर्थ यह है कि 'मैं हूँ' और इसमें “मैं" या आत्मा की ध्वनि है।
स्पिनोजा मानते थे कि प्रत्येक द्रव्य में अनन्त गुण हैं। हमारा ज्ञान दो गुणों तक ही मर्यादित है। चेतना और विस्तार। चेतना के असंख्य रूप हैं और प्रत्येक रूप आत्मा है। विस्तार के भी असंख्य रूप हैं और प्रत्येक रूप को प्राकृत पदार्थ कहते हैं।
___ जॉन लॉक का कथन है कि आत्मा प्रत्यक्ष ज्ञान का विषय है। मैं चिन्तन करता हूँ, मैं तर्क करता हूँ, मैं सुख-दुःख का अनुभव करता हूँ - इससे अपनी सत्ता का अनुभव होता है और ज्ञान होता है। इसीलिए कहा जाता है कि आत्मा ज्ञान का विषय है।
___जॉर्ज बर्कले ने विश्व की सत्ता का तीन प्रकार से वर्गीकरण किया है - (१) आत्मा और उसका बोध (२) परमात्मा एवं (३) बाह्य पदार्थ। इनके अनुसार आत्मा किसी भी समय चिन्तन या चेतना के अभाव में नहीं रहती।
. वह समय अवश्य आयेगा जब विज्ञान के द्वारा अज्ञात विषयों का अन्वेषण होगा। जैसी हम कल्पना करते थे, उससे भी अधिक विश्व का आध्यात्मिक अस्तित्त्व है। वस्तुतः हम जिस आध्यात्मिक जगत् में हैं, वह भौतिक जगत के ऊपर है,१०० ऐसा 'ऑलिवर लॉज' का मत है।
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