Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गो० कर्मकाण्डे
भंगविवक्षेयं माडदे सामान्यदोळ मोहनीयबंधस्थानंगळ भुनाकारंगळ मल्पतरंगळ मयस्थितंग यथाक्रमदिदं दश विंशति एकादश त्रयस्त्रिशत्संख्ये गळप्पुवु। संदृष्टि-स्था १० । भुजाकार २० । अल्प ११ । अव ३३ ॥ अनंतरं भुजाकार बंधादिगळ्गे लक्षणमं पेळ्वपरु :
अप्पं बंधतो बहुबंधे बहुगा दु अप्पबंधेवि ।
उभयत्थ समे बंधे भुजकारादी कमे होति ॥४६९॥ अल्पं बध्नन्बहुबंधे बहुकात्तु अल्पबंधेपि । उभयत्र समे बंधे भुजाकारादयः क्रमे भवंति ॥
अल्पप्रकृतिस्थानमं कटुत्तमनंतरसमयदोळ बहुप्रकृतिस्थानमं कटुत्तं विरलु भुजाकारबंधमे बुदक्कुं। तु मते बहुकात् बहुप्रकृतिस्थानमं कटुत्तमनंतर समयदोळल्पप्रकृतिस्थानमं कट्टिद१० नादोडे अल्पतरबंध बुदक्कुं। उभयत्र समे दंधे भुजाकाराल्पतरप्रकृतिस्थानबंधकं द्वितीयादिसमयंग
कोळ समबंधकनागुत्तं विरलवस्थितबंध बुदक्कु-। मपिशब्दविंदमवक्तव्यबंधमुमल्लियुमवस्थितबंधमुमुदरियल्पडुगुं ॥ अनंतरमव्यक्तबंधमं भंगविवक्षयं माडद सामान्यदिदं पेळ्दपरु:
सामण्ण अवत्तव्वो ओदरमाणम्मि एक्कयं मरणे।
एक्कं च होदि एत्थवि दो चेव अवन्दिा भंगा ॥४७०॥ सामान्यावक्तव्योऽवतीर्यमाणे एको मरणे । एकश्च भवत्यत्रापि द्वावेवावस्थितौ भंगौ ॥
प्राग्मोहनीयबंधस्थानानि दशोक्तानि तेषां भंगविवक्षामंतरेण भजाकारबंधाः विशतिः। अल्पतरबंधा एकादश । अवस्थितबंधास्त्रयस्त्रिशत् ॥४६८॥ एतान् लक्षयति
अल्पप्रकृतिकं बघ्नन्ननंतरसमये बहप्रकृतिकं बध्नाति तदा भुजाकारबंधः स्यात् । पुनः बहुप्रकृतिक २० बघ्नन्ननंतरसमयेऽल्पप्रकृतिकं बध्नाति तदाल्पतरबंधः । तत्र उभयत्र अपिशब्दादवक्तव्यबंधद्वयऽपि च द्वितीया
दिसमयेषु समानप्रकृतिकं बध्नाति तदावस्थितबंधः ॥४६९।। अथ सामान्यावक्तव्यभंगसंख्यामाह
पहले मोहनीयके बन्धस्थान दस कहे हैं। उनके भंगोंकी विवक्षा बिना किये भुजकार बन्ध बीस हैं, अल्पतर बन्ध ग्यारह हैं। और अवस्थित बन्ध तैंतीस हैं ॥४६८||
भुजकारादिका लक्षण कहते हैं
थोड़ी प्रकृतियोंका बन्ध करनेके अनन्तर समयमें बहुत प्रकृतियोंको बाँधे तो भुजाकार बन्ध होता है। बहुत प्रकृतियोंका बन्ध करनेके अनन्तर समयमें थोड़ी प्रकृतियोंको बाँधे तो अल्पतर बन्ध होता है। इन दोनों ही प्रकारके बन्धों में तथा 'च' शब्दसे दोनों अवक्तव्य बन्धों में भी जितनी प्रकृति पहले बाँधी थी पीछे द्वितीयादि समयोंमें उतनी ही बाँधे तो अवस्थित बन्ध होता है ।।४६९।।
आगे सामान्य अवक्तव्य भंगोंकी संख्या कहते हैं
१. अथ सामान्योक्तस्थानानि तद्भुजाकारादिबंधांश्च संख्याति' पाठोऽयमभयचंद्रनामांकितायां टोकायामधिकः।
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