Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गो० कर्मकाण्डे
पुंवेदमुमं हास्यद्विकमुमं कूडिदोर्ड नवप्रकृतिबंधस्थानमक्कुमल्लियों दं भंगमक्कु ९ अनु मोहनीयबंध प्रकृति कूटमिदो २ कूटदोळु कषायचतुष्कमं भयद्विकमुमंतु ध्रुवबंधितळारपुववरोळ
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पुंवेदमुमं हास्यद्विकमुमं कूडिदोर्ड नवप्रकृतिबंधस्थानमक्कुमल्लियुमो दे भंगमक्कु ९ मी यपूर्व
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करण गुणस्थानचरमसमयदोळ हास्यद्विकमुं भयद्विकमुं व्युच्छित्तियक्कुमनिवृत्तिकरण गुणस्थानदो ५ मोहनीय बंधकूटं प्रथमभागदोळिदी १ कूटदोळ ध्रुवबंधिगळु कषायंगल नाके यक्कुमवरोल
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पुंवेदमं कूडिदोर्ड पंचप्रकृतिस्थानमव कुमदरोळो देभंग मक्कु ५ मिल्लि पुंवेदं व्युच्छित्तियक्कुं । अनिवृत्तिद्वितीयभागदो मोहनीयबंध प्रकृति कूटमिदी ४ कूटदोळी कषायचतुष्कं ध्रुवबंधिगळeg | भंगमों यक्कु ४ यिल्लि क्रोधं निदुदु | अनिवृत्तितृतीयभागदोळु मोहनीयबंधकूटमिदी ३
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कूटदोळ ध्रुवबंधिगळी मूरुं कषायंगळेयध्वु स्थानमुमिदेयक्कुं । भंगमुमो वैयक्कुं ३ इल्लि मान१० कषायं निदुदु | अनिवृत्तिचतुर्थभागदो मोहनीयबंधकूटमिदी २ कूटदोळी कषायद्वयमे ध्रुवबंधिroga | स्थान द्विप्रकृतिकमक्कुं । भंगमों देयक्कुं २ इल्लि मायाकषायं निदुदु | अनिवृत्ति
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तद्भंगा : द्विकद्वयजी द्वौ ९ । अत्रातिद्विकं बंधव्युच्छिन्नं । अप्रमत्तेऽपूर्वकरणे च बंधकूटे २ चतुः संज्वलनभय
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far as पुंवेदे हास्यद्विके च मिलिते नवकं तेन तद्भंग एक : ९ अत्र हास्यद्विकभयद्विके व्युच्छिन्ने ।
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अनिवृत्तिकरणबंधकूटे १ चतुष्कषाय वबंधिषु पुंवेदे मिलिते पंचकं तद्भंग एक: ५ । अत्र पुंवेदो व्युच्छिन्नः ।
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१५ द्वितीयभागे कषाय चतुष्कं ध्रुवबंधिभंग एकः ४, क्रोधो व्युच्छिन्नः । तृतीयभागे कषायत्रयं भंग एक: ३ मानो
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अप्रमत्त और अपूर्वकरण बन्धकूट में चार संज्वलन, भय, जुगुप्सा ये ध्रुवबन्धी हैं । इनमें पुरुषवेद, हास्य, रति मिलनेपर नौ प्रकृतिरूप स्थान होता है । यहाँ भंग एक ही है । यहाँ हास्य, रति, भय, जुगुप्साके बन्धकी व्युच्छित्ति हो जाती है ।
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अनिवृत्तिकरण के बन्धकूट में चार कषाय ध्रुवबन्धी हैं । उनमें पुरुषवेद मिलनेपर पाँच प्रकृतिरूप स्थान होता है । यहाँ भंग एक ही है । यहाँ पुरुषवेदके बन्धकी व्युच्छित्ति हो जाती है । उसीके दूसरे भाग में कषायचतुष्क ध्रुवबन्धीरूप स्थान है । भंग एक । यहाँ क्रोध की व्युच्छित्ति हो जाती है । उसीके तीसरे भाग में तीन कषाय ध्रुवबन्धीरूप स्थान है। भंग एक
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