Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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माकन्दी नामक नववां अध्ययन - देवी के वासना पूर्ण आदेश का स्वीकार ११ RococcccccccccccccccccccccccccccsaccesccesEEK विउलाइं० णो विहरह तो भे इमेणं णीलुप्पलगवलगुलिय जाव खुरधारेणं असिणा रत्तगंडमंसुयाई माउयाहिं उवसोहियाई तालफलाणीव सीसाइं एगंते एडेमि।
शब्दार्थ - रत्तगंड - लाल कपोल, मंसुयाई - मूंछे, माउयाहिं - माताओं द्वारा, उवसोहियाई - सज्जित किए जाते रहे, एडेमि - फेंक देती हूँ। . ___ भावार्थ - मौत को चाहने वाले माकंदी पुत्रो! यदि तुम मेरे साथ विपुल भोग भोगते हुए रहते हो तो तुम जीवित रह पाओगे, मैं इस नीलकमल, भैंसे के सींग, नील की टिकिया तथा अलसी के पुष्प के समान, तीक्ष्ण धार युक्त तलवार से तुम्हारे लाल कपोल और काली मूछों से युक्त मस्तक, जिन्हें तुम्हारी माताएं सुशोभित करती रही हैं, ताड़ के फलों की तरह काटकर एकांत में फेंक दूंगी। देवी के वासना पूर्ण आदेश का स्वीकार
(१८) तए णं ते मागंदियदारगा रयणदीव देवयाए अंतिए एयमढे सोच्चा णिसम्म भीयाकरयल जाव वद्धावेत्ता एवं वयासी-जण्णं देवाणुप्पिया! वइस्सइ तस्स आणाउववायवयणणिद्देसे चिहिस्सामो। .
शब्दार्थ - आणा - आज्ञा, उववाय - उपपात - सेवा।
भावार्थ - रत्नद्वीप देवी द्वारा कही गई. यह बात सुन कर माकंदी पुत्र भयभीत हो गए। उन्होंने हाथ जोड़ कर मस्तक पर अंजलि बांध कर कहा - देवानुप्रिय! जैसा आप कहेंगी हम वैसे ही आपकी आज्ञा मानेंगे, सेवा करेंगे और आपके निर्देशानुसार रहेंगे। .
(१६)
... तए णं सा रयणदीवदेवया ते मागंदियदारए गेण्हइ २ त्ता जेणेव पासायवडेंसए तेणेव उवागच्छइ २ त्ता असुभपोग्गलाबहारं करेइ २ ता सुभपोग्गलपक्खेवं करेइ २ ता (तओ) पच्छा तेहिं सद्धिं विउलाई भोगभोगाइं भुंजमाणी विहरइ कल्लाकल्लिं च अमय फलाई उवणेइ।
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