Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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- ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र xaccococccccCCKINGEEEEEEECccccccccccccccccxccccccx
खेट:- वे गांव जिनके चारों ओर धूल के परकोटे या चारदीवारियाँ होती थीं। कर्बट:- गाँव और नगरों के बीच के छोटे आवास स्थान। मडंबः- वे बस्तियाँ जिनके आस-पास गांव न हों, जो जंगलों में बसी हों।
द्रोणमुखः- वे नगर आदि स्थान, जो समुद्रों या नदियों के जलमार्ग से तथा स्थलमार्ग से जुड़े हों।
पत्तन:- बड़े नगर या बंदरगाह। संवाहः- पहाड़ों की तलहटियों में आबाद गांव।
इनके अतिरिक्त आश्रम, निगम, सन्निवेश आदि स्थानों का भी आगम वाङ्मय में विभिन्न आबादियों के लिए प्रयोग होता रहा है।
(१४०) तए णं से पंडू राया कच्छुल्लणारयं एजमाणं पासइ २ त्ता पंचहिं पंडवेहिं . कुंतीए य देवीए सद्धिं आसणाओ अब्भुट्टेइ २ त्ता कच्छुल्लणारयं सत्तट्ठपयाई पच्चुग्गच्छइ २ त्ता त्तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ २ वा वंदइ णमंसइ वं० २त्ता महरिहेणं आसणेणं उवणिमंतेइ। - भावार्थ - पांडुराजा ने कच्छुल्लनारद को आते हुए देखा। वे पांचों पाण्डवों और कुंती देवी सहित आसन से उठे। उठकर सात-आठ कदम उनके सामने गए। तीन बार उनकी आदक्षिण-प्रदक्षिणा की, उनको वंदन, नमन किया। वैसा कर उन्हें उत्तम आसन दिया।
(१४१) तए णं से कच्छुल्लणारए उदगपरिफोसियाए दब्भोवरिपच्चत्थुयाए भिसियाए णिसीयइ २ ता पंडुरायं रज्जे जाव अंतेउरे य कुसलोदंतं पुच्छइ। तए णं से पंडुराया कोंतीदेवी पंच य पंडवा कच्छुल्लणारयं आढ़ति जाव पज्जुवासंति।
शब्दार्थ- उदगपरिफासियाए - पानी छिड़क कर, पच्चुन्थयाए - बिछाए गए, भिसियाएआसन विशेष। ___भावार्थ - कच्छुल्ल नारद जल छिड़क कर, डाभ बिछा कर, अपने आसन पर बैठे। उन्होंने पांडु राजा से राज्य यावत् अंतःपुर का कुशल क्षेम पूछा। पांडु राजा, रानी कुंती एवं
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