Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अपरकंका नामक सोलहवां अध्ययन - द्रौपदी के छुटकारे का सफल प्रयास २२१ saacocccccccccccccccccccccccccccccccCEGORGEOGRecx इसलिए चतुरंगिणी सेना से घिरे हुए पाँचों पांडव लवण समुद्र के पूर्व दिशावर्ती तट पर मेरी प्रतीक्षा करते हुए ठहरें।
(१७१) तए णं से दूए जाव भणइ (जाव) पडिवालेमाणा चिट्ठइ। तेवि जाव चिट्ठति।
भावार्थ - दूत ने हस्तिनापुर जाकर यावत् कृष्ण वासुदेव का संदेश दिया। पाँचों पांडवों को प्रतीक्षा करने को कहा। पाँचों पांडव यावत् लवण समुद्र के तट पर जाकर प्रतीक्षा करने लगे।
. (१७२) तए णं से कण्हे वासुदेवे कोडुंबिय पुरिसे सद्दावेइ २ ता एवं वयासी - गच्छह णं तुन्भे देवाणुप्पिया! सण्णाहियं भेरिं तालेह। तेवि तालेति।
शब्दार्थ - सण्णाहियं - सैनिकों को युद्ध हेतु सन्नद्ध होने की सूचक।
भावार्थ - फिर कृष्ण वासुदेव ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और कहा - देवानुप्रियो! सान्नाहिक भेरी बजाओ। आदेशानुसार उन्होंने, उसे बजाया। .
. . (१७३) ... तए णं तीसे सण्णाहियाए भेरीए सई सोच्चा समुद्दविजय पामोक्खा दस दसारा जाव छप्पण्णं बलवयसाहस्सीओ सण्णद्धबद्ध जाव. गहिया उहपहरणा अप्पेगइया हयगया (अप्पेगइया) गयगया जाव वग्गुरापरिक्खित्ता जेणेव सभा सुहम्मा जेणेव कण्हे वासुदेवे तेणेव उवागच्छंति २ त्ता करयल जाव वद्धावेंति।
भावार्थ - सान्नाहिक भेरी का शब्द सुनकर समुद्रविजय आदि दश दशाह यावत् छप्पन हजार बलिष्ठ योद्धा कवच बद्ध होकर यावत् अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित हुए। उनमें कई अश्वारूढ हुए यावत् विशाल सुभट समूहों से घिरे हुए सुधर्मा सभा में कृष्ण वासुदेव के निकट आए यावत् कृष्ण वासुदेव को मस्तक पर अंजलि बांधे प्रणाम कर यावत् वर्धापित किया।
(१७४) तए णं से कण्हे वासुदेवे हत्थिखंधवरगए सकोरेंट मल्लदामेणं छत्तेणं
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